नोनी मन हे असुरक्षित

मानुष जिनगी के दू मजबूत चक्का (पहिया) होथे नर अउ नारी। गाड़ी के आघू बढ़ना दूनों के बिना मुश्किल हे। त फेर आजकल हमर समाज म दिनोंदिन ये का घटना सुने अउ देखे बर मिलत हे? नान–नान लइका मन हवस के शिकार बनत हे। अइसन घटना अउ दहशत काबर होत हे? एक तरफ देखे जाय त देश सरलग तरक्की करत हे अउ दूसर तरफ देखबे त नाबालिग के जीना मुश्किल होगे हे। येखर कारण ये हरय कि सही उम्र म सही जानकारी उन लइका ल नइ मिल पाना। 

आजकल फैशन ह भारी पड़त हे। कोनो भी एक मनखे ऊपर ऊँगली उठाना गलत होही; "ताली दूनों हाथ ले बजथे, एक हाथ ले नहीं"। आजकल के नाबालिक जेन सोलह–सत्रह साल के टूरी (लड़की)मन ल नान–नान कपड़ा पहिरे के का जरूरत हे। अंग प्रदर्शन करे ले का लाभ होथे? शरीर ल ढँके ले ऊँखर पहिचान लुका जाही या फेर ओमन मनखे नइ कहलाही? ये सब के जानकारी मांँ–बाप ल देना चाही। "गुड़ ह खुल्ला रथे तभे माछी बइठथे"।हमर हिंदू धर्म म कपड़ा के विशेष महत्व हे।

हम दूसर के देखासिखी काबर करन; कपड़ा के संँगेसंग लोगन के सोच घलो छोटे होत जात हे। लेकिन सवाल उठथे की दो–चार साल के लइका मन ले छोटे कपड़ा अउ फैशन ले का लेना –देना हे। ओखर मन के का दोष हे? सिर्फ लड़की के ही नहीं लड़का मन ल भी ध्यान देना चाही की ये नान –नान लइका के हत्या करे ले का मन शांत होही? देवी के रूप जेन नवरात्रि म घर–घर जा के पूजा संपन्न करथे उही लइका ल शिकार बना के का लाभ होथे? जेन पूरा संसार के रचना करथे, जेकर बिना संसार अधूरा हे आज ऊंँखरे ऊपर गलत नजरिया डालत हे? ये बात तो सोचना ही नहीं हे की नारी नइ होही त संसार के का होही? 

  सोशल मीडिया :– सोशल मीडिया यानी मोबाइल, इंटरनेट,यू ट्यूब.....। अइसने न जाने कतको अकन ऐप हे जेन ल नान–नान लइका मन देख –देख के बिगड़त हे।मोबाइल के गलत उपयोग करत हे। मोबाइल कोनो बुरा जिनीस नो हरय, ओहर सामने वाला मन ऊपर हे की कइसे उपयोग म लाना हे। मोबाइल के बिना तो काखरो काम सम्भव नइ हे, लेकिन सही उपयोग होही तब। किसम–किसम के वीडियो,फोटो ल देख –देख के लइकामन के दिमाग म बुरा असर पड़थे। हम इंटरनेट ल तो नइ रोक सकन;फेर अपन लइका ल तो रोक सकत हन न।

पढ़ाई–लिखाई बर मोबाइल ल ज्यादा सहूलियत माने जाथे। ओखर कारण आजकल के लोग–लइका मन ल मोबाइल धरे ले कोनो रोक–टोक नइ सकय।

संस्कार अउ वातावरण:–संस्कार के बात आथे त माँ–बाप , बड़े बुजुर्ग के शिक्षा अउ संस्कार ऊपर पहिली सवाल खड़े होथे। लइका कोनो ल गारी देही या गलत काम करही त सीधा यही बोलथे तोर दाई–ददा इही ल सिखाए हे का? घर के रहन–सहन लइका के दिमाग म बड़ असर डालथे। जइसन काम बड़े मन करथें उन ल देख के लइका मन घलो करथें "जइसे–जइसे घर–दुवार तइसे–तइसे फइका, जइसे –जइसे दाई–ददा वइसे–वइसे लइका"। पारा –मुहल्ला , अड़ोसी–पड़ोसी , संगी –साथी मन के घलो संगति के असर होथे। गलत संगति हर लइका ल बिगाड़ के रख देथे।ये सब के विशेष ध्यान घर के बड़े ल देना चाही। लइका का करत हे, कोन संगी–साथी हे। कुछ गलत काम तो नइ करत हे न। लइका ल पूजा–पाठ,आस्था,धर्म,वेद–पुराण के बात सिखाना मांँ–बाप के जिम्मेदारी बनथे। 

अगर हम लइका ल नारी के इज्जत करना सिखाबो, ओखर मन म ये बीज बो देबो की नारी –बहन, माँ,बेटी अउ ये संसार म जतेक नारी ले संबंधित रिश्ता–नाता हे, नारी देवी के रूप हरे। त कोनो भी नारी के ऊपर गलत नजरिया नइ डारही। आज भी सब जानत हे की नारी देवी के रूप हरे, लेकिन अगर पूजा –पाठ अउ आस्था मन म जिंदा हे उही मनखे मन नारी , बहू,बेटी के इज्जत करथें। 

लइका कोनो गलत काम करत हे ओला मांँ–बाप सजा देथे। दू झापड़ मार देथे, दूसर लइका देख के डर जाथे की गलत काम म मार परथे।नाबालिग संग कोनो गलत होवत हे त मनखे के संगेसंग कानून ल भी कड़क सजा सुनाए के हक हे। नाबालिग संग दुराचार करत हे तुरते फांँसी चढ़ा दे। दूसर के हिम्मत नइ होही कोनो भी लइका ल हाथ लगाए के। 

वइसे एक नवा कानून बने हे की अइसन अपराधी मन ल बीस साल के सजा सुनाही। अब कतेक कम होही की बढ़ जाही ये तो बाद म पता चलही।

लेकिन हम पर मनखे म भरोसा तो नइ कर सकन।ज्यादातर मांँ–बाप मन बाहर कमाए ल जाथे त अपन तीन–चार साल के लइका ल आया या फेर पड़ोसी के भरोसा छोड़ के चल देथे लेकिन पड़ोसी के मन म का हे ओला कोनो नइ जान सके। संगेसंग अपन लइका ल सिखाना चाही की कोनो गलत बात करत हे या चॉकलेट, बिस्कुट दे के बहाना बहकावत हे त ओला उहाँ ले भाग जाना हे अउ घर के लोगन ल बिल्कुल खबर करना हे, अब्ब्ड़ अकन बात हे जेमा नाबालिग मन गलत हाथ म जाए बर बच सकथें।

ये बात सिर्फ बोले अउ पढ़े बर नइ,ये बात के सब ल अमल करना चाही, एकता अउ विश्वास ले मनखे के अब्बड़ अकन काम बन जाथे, बने संस्कार,शिक्षा ही मनखे ल मनखे बनाथे, नइ ते पशु अउ मनखे म कोनो अंतर नइ रही जाही।


लेखिका

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com