पापी व्यक्ति का विनाश निश्चित है

आखिर पापी व्यक्ति को भगवान के घर मिलने वाले दंड का डर क्यों नहीं है। भरपूर पाप करने वाले व्यक्ति को भगवान के घर जाकर जवाब देने का डर क्यों नहीं है। पूरी जिंदगी पाप में ही बसर करने वाले को भगवान

 का डर क्यों नहीं है। आखिर पापी व्यक्ति को ईश्वर से मिले दंड का डर क्यों नहीं है। आखिर क्यों? शायद वह सोचता है कि उसको जो भी दंड मिलेगा, यह दुनिया तो नहीं दिखेगी, यही तो गलती कर रहा है। हर व्यक्ति को अपने किए हुए पाप की सजा इसी जन्म भुगतनी पड़ती है। यह अटल सत्य है। आपकी सजा भगवान या तो आपको आखिरी समय में बिस्तर पर ही सड़ा गला करके मृत्यु लोक भेजता है, जो बहुत ही ज्यादा कष्टदाई होता है। 

पापी व्यक्ति अपने पाप में इतना लीन हो जाता है कि उसके साथ चाहे जितना भी बुरा हो वह अपने पाप करना नहीं छोड़ता है। पापी व्यक्ति अपने से बड़ों को न केवल गालियां देता है --मारता पीटता भी है , इतना ही नहीं एक दिव्यांग पिता के छाती पर बैठकर उनका गला दबाना और उनको थप्पड़ पर थप्पड़ मारना, यह पाप आखिर करवा कौन रहा है। समझदार जीवनसाथी कभी भी इस तरह के पाप करने को प्रोत्साहन नहीं देगी। बूढ़े लोगों के बाल खींचना। 

फिल्मों में दिखाया जाता था की कुछ पढ़ी-लिखी लड़कियां गांव के अनपढ़ मां-बाप को प्रताड़ित करती हैं।पर आज के कलयुग में तो देखा गया है, अनपढ़ औरतें जो गांव से शहर में आती हैं । गवार औरतें जो पहली बार शहर की चकाचौंध देखती हैं, पागल सी हो जाती हैं । 

यही औरतें खुद तो पाप करती हैं साथ में अपने जीवन साथी से भी पाप करवाती हैं। एक दिव्यांग व्यक्ति ने अपने ही बड़े बेटे को बदनाम करने की अपनी गलती की सजा इस तरह से पाई कि उसकी सबसे नालायक संतान ने वृद्ध पिता को पूरे मोहल्ले के सामने  पीटा। व्रद्ध माता के भी गांव की अनपढ़ बहु ने बाल नोचे। यह पाप की सजा किस रूप में मिली। यह तो भगवान ने न्याय कर ही दिया। इस अनपढ़ औरत ने पैसे के खातिर अपनी ही औलाद की जिंदगी बर्बाद कर दी। 

केवल मात्र दस लाख रुपए के लिए अपनी ही शादीशुदा बेटी की जिंदगी बर्बाद कर दी। इसके लालच का और पाप का फल इसको ऐसा मिला की दूसरी लड़की दिमाग से कमजोर है। फिर भी यह भगवान के पाप को डर नहीं रही है। जब तक दिव्यांग पिताजी स्वस्थ थे ,वह इनको अपने घर में भटकने भी नहीं देते थे ,पर जैसे ही इन्होंने उनको मारा पीटा और वह कोमा में चले गए। 

यह लोग उनके घर में जाकर रहने लगे। डरी हुई व्रद्ध माता इनकी मार के डर से और अपनी जान के डर से इनकी हर बात मानने को मजबूर हो गई। यहीं से शुरू हुई एक अत्यंत पाप की घटना, नहीं तो ,जो माता-पिता अपने बड़े बेटे से इतनी अच्छी तरह बात कर रहे थे ,अचानक से तीन दिन के बाद ऐसा क्या हो गया कि बेटे को अंधेरे में रखा गया । 

उसका फोन उठाना बंद हो गया, उसके मैसेज का जवाब नहीं दिया जा रहा था। यहां तक के सब स्टेटस देखे जा रहे थे,सारे मैसेज पढ़े जा रहे थे ,पर जवाब नहीं आ रहा था' यह कितनी बड़ी गंदगी है दिमाग की। लाचार माता-पिता को इतना तड़पा तड़पा कर मारा की जिसने भी उनकी स्थिति देखी वह कांप गया। सुना है कि दिव्यांग पिता करीबन चार महीने भूखे प्यासे पडे रहे , उनका शरीर सड गया पर यह लोग उनका सारा पैसा लूटने  में लगे थे । इस तरह से गुलाम कर दिया मां को कि वह किसी से भी बात नहीं करती थी, उसको विधवा होने का ताना दिया जाता था। 

कैसा कलयुग है ईश्वर ,पापी डरता क्यों नहीं है गलत तरीके से पैसा हड़पने में या मकान पर कब्जा करने में। इस अनपढ़ औरत को लगता है कि अगर यह पूजा पाठ का ढोंग करेगी, रोज सुबह- शाम रामायण पढेगी तो इसके पाप धुलते जाएंगे। पर ऐसा होता नहीं है। ऐसे तो हर कोई बलात्कार करें फिर पूजा करें ,फिर से हत्या करते और फिर पूजा कर ले तो क्या पूजा का फल मिलेगा। कभी नहीं। 

ज्यादा पूजा पाठ करने वाले को पाप करने का अधिकार बिल्कुल भी नहीं है। ईश्वर की पूजा पाठ वही ज्यादा करता है जब पाप ना करता हो। जो ईश्वर की पूजा पाठ करता है, उसे पाप से डरना चाहिए। और यह पापी लोग तो माता को किसी से भी बात भी नहीं करने देते थे ,उनकी तो ऐसी दुर्दशा हुई की देखने- सुनने वाले के रोंगटे खड़े हो गए। उनके पैसे से ही उनको उनकी ही गाड़ी में पीछे डिग्गी में गद्दा डालकर औधे मुह लिटा कर ले जाया जाता था। ऐसे तो कोई जानवर को भी नहीं ले जाता है। 

खुद सब लोग उनकी गाड़ी में आराम से बैठ कर जाते थे, उनके ही पैसे से समोसे खाते हुए जाते थे और वह खुद अपनी गंदगी में लटे  हुए भीगी भीगी मैक्सी में यात्रा पूरी करती थी। इतना सब कुछ हो गया लेकिन बड़े बेटे को खबर भी नहीं होने दी क्योंकि यह लोग जानते थे कि अगर बड़े बेटे को पता चल गया तो वह इनका इलाज करवा देगा और इनको ठीक करवा देगा। 

पर इनकी नियत तो गंदी थी, इनका मकसद तो अकेले सारा का सारा पैसा हड़पना था। काश -काश ऐसा कुछ नियम होता कि इन माता-पिता की कोई पेंशन ना होती तो यह किसी और बेटे के पास होती । या तो यह छोटे बेटे के पास होती या बड़े बेटे के पास होती पर बीच वाले के पास कभी नहीं होती। क्योंकि बीच वाला तो सिर्फ पैसे का लोभी है। पेशन के लालच में माता को अपने पास रखा हुआ था। अगर पिता के अकाउंट में चालीस लाख रुपया नहीं होता तो यह माता-पिता की शक्ल भी नहीं देखता,उल्टा होने धक्का दे देता।

पैसा भी बर्बादी की तरफ ले जाता है यह साक्षात उदाहरण रहा इन माता-पिता का।

इतना पैसा होते हुए भी यह पिता अपने बड़े बेटे से पैसा मांगता रहा और यह दिखाता रहा कि उसके घर में पैसे की बहुत कमी है। समझ तो यह नहीं आया कि यह पैसा आखिर  किस काम आया।

इस पैसे में ना तो बच्चे बना दिए्। और तो और सारी जिंदगी गरीबी में और कष्ट में बिता दी। इन पैसों से एक बेटी की शादी हुई वह भी बर्बाद हो गई, घर आकर बैठ गई। आखिर यह मनहूस का पैसा किस काम आया या किसी काम आएगा

यह तो सिर्फ जीवन ही बर्बाद करेगा।जिसके भी हाथ गया वह बर्बाद ही होगा।

अगर पाप से बचाना है माता-पिता की संपत्ति को  तीन भाइयों में बराबर- बराबर तीन भागों में बांट देना चाहिए। नहीं तो विनाश निश्चित है। आज तक कोई भी ईश्वर के प्रकोप से बच नहीं पाया। अभी भी समय है पापी मनुष्य को अपने पाप से बचना चाहिए।

लेखिका-- ऊषा शुक्ला

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