तुम्हारी चालाकियों से अनजान नहीं

तबस्सुम इन लबों पर अब आसान नहीं

तुम्हारी चालाकियों से हम अनजान नहीं,


क़ल्ब में दफन  गुज़िश्ता वो पल आज भी है,

उन यादों का ज़रा भी तुमको भान नहीं।


सोचा था बदल जाओगे तुम मेरी मोहब्बत में,

पर इश्क़-ए-हक़ीक़ी का तुमको मान नहीं।


जान समझ कर हक़ जताया करते थे,

सिल गये लब मेरे अब इनमें जान नहीं।


क्या खोया रीमा काश ये इल्म उसे भी होता ,

हमारी रूहानियत का उसको सम्मान नहीं।


 डॉ.रीमा सिन्हा

लखनऊ-उत्तर प्रदेश