बिहार पर भार है, नीतीश कुमार है!

नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि आदमी के गिरने की कोई सीमा नहीं होती। आयाराम गयाराम के पूर्व के सारे उदाहरण उन्होंने ध्वस्त कर दिए। खुद पहल करके विपक्ष को जोड़ा। जिस बीजेपी के साथ गए हैं उसके ठीक विपरीत सिरे सीपीआई (एमएल) के सम्मेलन में उन्होंने मोदी को हराने के लिए विपक्षी एकता की गुहार लगाई थी। विपक्षी नेताओं का पहला सम्मेलन खुद पटना में किया था। और आज बिना कोई कारण बताए उसे छोड़कर भाजपा के साथ चले गए। 

ये वही नीतीश कुमार हैं जो 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव और कांग्रेस के साथ आए थे। महागठबंधन बना। 2014 में मोदी जी ने लोकसभा और उसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा जीतकर जो अपना अश्वमेध यज्ञ शुरू किया तो उसके घोड़े को बिहार में लालू ने ही पकड़ा था। मगर सबसे ज्यादा 81 सीटें जीतने के बाद भी उन्होंने कम सीटों 71 वाली जेडी यू के नेता नीतीश को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन 2017 में वे फिर भाजपा के साथ उसी तरह चले गए जैसे अभी गए हैं। नीतीश कुमार का पूरा इतिहास इसी तरह विश्वासघात का रहा है। लेकिन यह अब आखिरी मौका है। 

इसके बाद उनकी राजनीति ही खत्म हो जाएगी और सबसे दुख की बात होगी कि उनके जीवन का उत्तरार्द्ध सोनिया गांधी या लालू प्रसाद यादव की तरह अपनी पार्टी में सम्मान पाते हुए नहीं बीतेगा बल्कि लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी की तरह बेचारगी में गुजरेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पार्टी के लोगों को ही जब अनुपयोगी बनाकर उन्हें अप्रासंगिक बना दिया तो नीतीश तो वह नेता हैं जिन्होंने मोदी के सामने से 2013 में खाने की थाली खींच ली थी। 

मोदी अगर अकारण आडवानी, जोशी, राजनाथ सिंह, गडकरी और भी बहुत से नाम हैं, जिनमें चली गईं सुषमा स्वराज भी हैं जिनके लिए आखिरी वक्त में भक्तों ने यह कहा था कि उनके पति को चाहिए कि जब वे घर आएं तो उनके बाल पकड़कर घसीटते हुए उनकी पिटाई की जाए, तक सब की प्रतिष्ठा खत्म कर सकते हैं तो फिर नीतीश को जिन्होंने 2013 में खाने पर बुलाकर फिर मना किया था कि मत आओ कैसे भूल सकते हैं?

नीतीश की कहानी बहुत सारे लोग लिखेंगे। दिन तारीखों के साथ। इसलिए उन्हें बताने का कोई मतलब नहीं है। मगर जो बड़े कांड किए हैं. जिन्होंने आदमी के प्राण भी ले लिए वह तो एक बार फिर लिखित में सामने रखना पड़ेंगे। वह आदमी इनका राजनीतिक गुरु था। जी हां! शरद यादव। उन्हीं को नीतीश ने 2016 में पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया था। सात बार के लोकसभा और तीन बार के राज्यसभा सदस्य शरद यादव जिस जेडी यू को बनाने वाले थे और 13 साल जिसके अध्यक्ष रहे थे, उन्हें नीतीश ने हटा दिया। शरद यादव यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए। 

संसद सदस्यता नहीं रही तो जिस बंगले 7 तुगलक रोड पर 22 सालों से रहे उसे खाली करके जाना पड़ा।उन्होंने कहा था इस बंगले से पहले भी वह कई सालों से इसी लुटियंन जोन में रहे। मगर अब इसके बाहर प्राइवेट मकान में जाना पड़ रहा है। जो कोई भी नेता जाना नहीं चाहता। क्योंकि नेताओं के पास आने जाने वाले लोग लुटियंन जोन के अलावा दिल्ली के दूसरे दूरदराज के इलाकों में नहीं जा पाते। गुलाम नबी आजाद का बंगला उनके पास कोई सरकारी स्थिति न होने के बावजूद बरकरार रखा गया है। क्योंकि वे मोदी सरकार की शरण में आ गए। मगर शरद यादव ने 2014 में ही मोदी के साथ जाने से इनकार कर दिया था। और इसी के अपराध में नीतीश ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया। राज्यसभा नहीं दी। 

और वे इन सारे सदमों को एक साथ नहीं सह सके। शरद समाजवादियों के पहले हीरो थे। 1974 में जनता पार्टी के पहले उम्मीदवार के रूप में जबलपुर से लोकसभा जीते थे। दबंग छात्र नेता के तौर पर। मगर नीतीश से धोखा खाकर फिर नहीं संभल पाए। नीतीश रविवार को एक बार फिर मुख्यमंत्री से इस्तीफा देकर वापस मुख्यमंत्री जरूर बन गए हैं। मगर अपनी सारी प्रतिष्ठा, सार्वजनिक सम्मान खत्म करने के बाद। 2020 के बाद यह तीसरा मौका है जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली हो। 

2020 विधानसभा में आरजेडी, बीजेपी के बाद तीसरे नंबर पर रहने के बाद भी वे मुख्यमंत्री बन गए थे। भाजपा की मदद से। मगर फिर महागठबंधन के साथ आए। और तेजस्वी को दूसरी बार उप मुख्यमंत्री बनाते हुए शपथ ली। और फिर 28 जनवरी 2024 को तीसरी बार बीजेपी के साथ शपथ ली। बेशरमी की सारी सीमाएं पार कर दीं। जनता इसको समझ रही है। बिहार की वह जनता जो 2015 में नारे लगा रही थी बिहार में बहार है नीतीश कुमार है! वह कहने लगी कि श्बिहार पर भार है नीतीश कुमार है! दरअसल जनता कारण चाहती है। आप जिसने कहा था कि मैं मर जाऊंगा मगर अब बीजेपी के साथ नहीं जाऊंगा। 

वह क्यों चले गए। नीतीश बता नहीं पा रहे हैं। यह वैसा ही मामला है जैसे कोई तलाक के लिए कोर्ट जाए और जज पूछें क्यों तलाक चाहिए तो व्यक्ति कहे कि वकील साहब बताएंगे। तो अब यह भाजापा पर है कि वह अपना पक्ष मजबूत करने के लिए किस पर इल्जाम रखना ज्यादा सही समझती है। राहुल गांधी पर या लालू यादव पर। जो बीजेपी कहेगी। वही गोदी मीडिया कहने लगेगा। मगर वह चलेगा नहीं। जनता भोली हो सकती है। याददाश्त कम हो सकती है। मगर उसे कहानी चाहिए। 

और इस बार नीतीश के पास कोई कहानी नहीं है। खुद जेडीयू के लोग पूछ रहे हैं। यहां तक कि भाजपा के लोग भी। मगर कारण किसी को नहीं पता। दबे स्वरों में राजनीतिक क्षेत्र में एक ही बात कही जा रही है कि नीतीश की कोई कोर दबी है। मतलब कोई ऐसी चीज है जो मोदी जी अमित शाह के पास पहुंच गई है जिससे नीतीश मजबूर हो गए हैं। 

वह कोई फाइल है या कुछ और यह अभी किसी को नहीं पता। मगर कुछ तो है! नहीं तो जिन अमित शाह ने यह भरी सभा में कहा था कि सब कान खोलकर सुन लो अब नीतीश के लिए दरवाजा कभी नहीं खुलेगा। भाजपा के दरवाजे उनके लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। फिर ये दरवाजे क्यों खुले? इसका एक ही कारण हो सकता है कि नीतीश बिल्कुल शरणागत होकर बीजेपी के दरवाजे गए हों। मगर जो भी हो नीतीश की राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो गई।

 और यह बिहार में आरजेडी के लिए अच्छा है। इसका मुकाबला अब सीधा भाजपा से होगा। बीच में नीतीश के खत्म होने से वोट बंटेगा नहीं। आरजेडी के नेतृत्व में महगठबंधन बनाम भाजपा। यूपी में भी यही सीन बन गया है। सपा की अगुआई में कांग्रेस और जयंत चौधरी सीधे भाजपा से लड़ेंगे। वहां भी नीतीश की तरह मायावती अप्रासंगिक हो जाएंगी। और 2024 के लोकसभा चुनाव के भी सारे कन्फ्यूजन दूर हो जाएंगे। इन्डिया गठबंधन इस तरह धोखेबाजों के निकल जाने पर और मजबूत होगा। 

बिहार में जो 17 लोकसभा सीटों पर जेडीयू दावे कर रहा था वह सीटें अब आरजेडी और सहयोगी दलों में बंट जाएंगी। साथ ही गठबंधन के बाकी घटकों को भी एक मैसेज मिलेगा कि अब तीसरी धारा की कोई गुंजाइश नहीं है या तो इंडिया गठबंधन के साथ मजबूती से या बीजेपी के साथ शरणागत होकर। आमने सामने की लड़ाई इंडिया गठबंधन के लिए फायदेमंद होगी। भाजपा से सीधा मुकाबला!