भारत माँ की बात हे न्यारी
अलग राज्य लोग निराली
जहाँ खेतो की हो हरियाली
लगे माँ जैसे नई नवली
सब जाती के लोग यहां
भेदभाव को न मिले जगा
आदर सम्मान अथिति मिले
छोड़ सब शिकवे और गिले
हो चुके कही क्रांतिवीर
झेल कर छाती पर तीर
बहाया हे अपना खून
देनी पड़ी थीं उन्हें जान
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई
सब रहते जैसे भाई भाई
भला बुरा न किसीसे कहे
मिठे बोल बोलते सब जाये
सौ, कविता पवन दाळू,खामगाव, महाराष्ट्र