विश्व हिंदी दिवस : हमारी हिन्दी..

"हमारी हिन्दी" महकती रही आंगन में 

कभी तुलसी की तरह..

कभी नीम बनकर..


उसने जन्मीं न जानें कितनी ही भाषाएं 

कभी बीज की तरह..

कभी पौध बनकर..


उसने संभाले रखा सभ्यताओं को

कभी इतिहास की तरह..

कभी संस्कृति बनकर..


उसने बढ़ने ही नहीं दिया "प्रदूषण"

कभी धूप की तरह..

कभी बारिश बनकर..


उसने "महसूस" किया हर एक अंतस

कभी कविता की तरह..

कभी गीत बनकर..


सुनों, दायित्व हमारा है कि संभालेंगे इसे

कभी वंशज की तरह..

कभी अनुगामी बनकर !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश