भारत बोल रहा है

बोल रहा है भारत अपना मैं अविचल और अविनाशी हूँ।

 क्या मजाल रे मिटाने वाले मैं अविचल अविनाशी हूँ ।।


 अस्तित्व मेरा तब भी था जब तेरा कोई पता नहीं ।

अस्तित्व मेरा तब होगा जब तेरा कोई पता नहीं ।।


 एक समय तब एक दुष्ट मुझे सागर में डूबाने आया था ।

फिर वराह रूप उस विष्णु ने  मुझको फिर तारा था ।।


फिर तेरी क्या औकात रे पापी तुम भर रहा अपना पाप घड़ा ।

 नरसिंह रूप फिर आएंगे फोड़ेंगे तेरा पाप घड़ा ।।


 रावण से तुम बड़ा नहीं फिर उसका भी तो हुआ अंत ।

अब तुम अपने दिन गिनो होना भी   है तेरा भी अंत ।।


 दुष्ट और दंभी तब भी थे जब श्री कृष्ण लिए थे अवतार ।

 एक-एक कर सारे दुष्टों का उस कलाधारी ने किया संघार ।।


 दानवीर की है या धरती दधीचि करे अपने तन को दान ।

 अंगूठा सहित कवच-कुंडल भी बताता कितना दान महान ।।


 मुझे पता है यह कलयुग है ,अधर्मी की कमी नहीं ।

पर समय-समय पर  अधर्मी का हिसाब करने में कमी नहीं ।।


 प्रश्न उठाना तेरा मकसद मंसूबे तेरे होंगे नाकाम ।

आर्यावर्त की शान शौकत को कम करना तेरा ही काम ।।


पर मंसूबा अधूरा रहेगा जब तक जिंदा मेरे लाल  ।

समय-समय पर परशु-राम-कृष्ण-शंकर-विवेक का होता रहेगा धरा पर अवतार ।।


श्री कमलेश झा

नगरपारा भागलपुर