जाता हुआ वर्ष

 जाता हुआ वर्ष दे गया अनेक सौगात,

हर बार की तरह ही इस बार भी दर्द अपार।

अश्रुमय हँसती चितवन की स्पंदित झंकार,

अनंत वेदना पथ पर अहसासों का अंबार।


गंध स्मृतियों की लाई थी पावन प्यार,

निस्तब्ध नयन देखते रहे मृदु स्वप्न हजार।

उड़ चला पंक्षी बन, समय बड़ा बलवान,

आघात सुकोमल देता रहा अक्षर इंतजार।


टकटकी लगाए तारों को गिनती उंगलियाँँ,

जागकर तकती रही प्यारी सोती दुनिया।

बन  सवेरा  सघन  दुःख  उर  में  समाया,

गाती रही खामोश आँखें कोई समझ न पाया।


भाग्य लकीरों के मिले मेरे देवता व्यस्त,

भींगी पलकें तरस गई पाने को करुण हस्त।

उलझन हृदय की बढ़ाता बहा बसंत बहार,

अंतर्मन में पतझर लगाता रहा प्रीत गुहार।


अधर पर सिमटा अधीर हास परिहास,

सुरधनु के  सुंदर रंग जैसा बिखरा ख़्वाब।

बीता इक इक पल यौवन की सुषमा,

प्रस्तर से फूटते प्राणों की मौन उपमा।


_ वंदना अग्रवाल "निराली"

_ लखनऊ उत्तर प्रदेश