माँ के पदचिन्ह पर चलती है हर बेटी और माँ के संस्कारों का आईना होती है बेटी। परिवार को संभालने का हुनर अपनी माँ से ही बेटी सीखती है। हर बेटी को ससुराल की गरिमा बढ़ाते कूल का मान बढ़ाना होता है बचपन से अपनी माँ का रहन-सहन देखते बेटी जवान होती है। एक माँ को ये बात हंमेशा याद रखनी चाहिए जैसा बर्ताव वो अपने परिवार के सभ्यों के साथ करती है बेटी वही सारे गुण अपनाती है। माँ के वाणी, वर्तन और सूज-बुझ का बहुत बड़ा असर बेटी के उपर होता है।
घर में सास-ससुर है तो उनके साथ अपनत्व जताते बात करना, सेवा करना, मान-सम्मान देना बेटी में परिवार प्रेम की भावना जगाता है। छोटे देवर, ननद या देवरानी है तो सबके साथ मिल जुलकर रहना और सबकी परवाह करना बेटी में सौहार्द भाव जगाता है।
घर काम से लेकर हर बात में बेटी को काबिल बनाना चाहिए ताकि ससुराल में किसी बात पर ताने उल्हाने का शिकार ना होना पड़े। बेटी की शादी के बाद हर छोटी, बड़ी बात पर टांग अड़ाना अक्कल मंदी नहीं। बेटी को सारी समझ देकर संस्कारों से सींच कर विदा करें, आपका काम यहाँ तक ही है। आपकी शिक्षा सही होगी तो बेटी ससुराल में दूध में शक्कर सी घुल मिल जाएगी। बेटी को पढ़ा लिखाकर अपने पैरों पर खड़ी रह सके उतनी काबिल बन जाए उसके बाद ही शादी के बारे में सोचें। बेटी को बोझ ना समझें, कच्ची उम्र में शादी करवा देना बेटी के जीवन के साथ खिलवाड़ होगा। हर माँ की जिम्मेदारी होती है बेटी का जीवन संवारने में उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहें।
कच्ची मिट्टी सी गुड़िया को तराशे और जीवन संघर्ष से जूझने में माहिर बनाए। माँ के जीवन की परछाई सी बेटी में माँ के हुनर का प्रतिबिम्ब दिखता है। हर बेटी एक योद्धा सी होनी चाहिए ज़िंदगी की चुनौतियों से लड़ने की क्षमता और परिवार को संभालने की कुनेह से भरी हर मोर्चे पर लड़ने के लिए सक्षम होनी चाहिये, और ये काम एक माँ से बेहतर कोई नहीं कर सकता।
माँ पिता भी है, माँ गुरु भी है, सौ शिक्षक बराबर एक माता होती है बेटी के वजूद की मूर्तिकार माँ होती है। बेटी को दहेज में संस्कार दीजिए, शिक्षा दीजिए, हिम्मत, ताकत और हौसला दीजिए। साथ में हर मुश्किल का सामना कर सकें और प्रताड़ना का प्रतिकार कर सकें ऐसी समझ और शक्ति दीजिए। ये सारे गुण और हुनर माँ में होंगे तभी बेटी हर लिहाज से सक्षम बनेगी। हर माँ को जागरूक होना होगा अपनी बेटी का जीवन संवारना है तो खुद को पहले काबिल बनाना होगा। अब वो ज़माना नहीं रहा कि बेटी को ये सलाह दी जाएं कि ससुराल ही तेरा असली घर है, पति और घरवाले जैसे भी रखें रह लेना जहाँ तेरी डोली उतरी वहां से ही तेरी अर्थी उठनी चाहिए। बेटियों को हारना नहीं लड़ना सिखाईये, और तभी समाज में से स्त्री विमर्श अध्याय पर पर्दा पड़ेगा।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु