"प्रेरणा अवतार से"

      विभु अयोध्या लौट आये, काल की नव योजना थी। 

     "सौंपता यह राज्य थाती",यह भरत की भावना थी।। 

      "है जटिल रक्षण सु-शासन, यह समर्पित आपको ही। 

    आप स्वामी इस धरा के, पौर  चाहें  भाव  को  ही"।। 

     राज-तिलकित राम होते, देयता अनुरागना थी। टेक 1

          स्वर्णमाला दिव्य भूषण, रत्न नीलम शोभना थी।। 

            सब अलौकिक रूप शोभें, ब्रह्मचारी ध्यानमय थे। 

      अम्ब दें सुर  हार  उनको, शोभते ज्यों हिम निलय थे।।

     शुक्तिजों के  खण्ड कर  दें,  लोचनों  में  वेदना  थी। टेक 2

       देख हनु को राम व्याकुल,"लुप्त जिन  की  चेेतना थी"।।  

           संशयों से  'भक्त'  घिरते, खोल दें  हिय  राम दिखते। 

       संग  सीता सब  सभासद,  वीर  महिमा  ईश रचते।। 

       पात्रता त्रेता विनय की,   लोकमत  उद्गारना   थी।टेक ३ 

            युग बदलता, स्थिर सदा ही,  सीख  लीला साधना थी।। 

     ब्रह्मचारी = हनुमान, वीर= हनुमान, भक्त= राज दरबार के महाजन।

मीरा भारती ।