पार्क में बनी गांधी जी की मूर्ति के आगे एक आदमी हाथ जोड़कर खड़ा हुआ "महात्मा! देश का सर्वनाश हो गया है। हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। तुम्हें फिर से जन्म लेना है बापू।" कहते हुए देर तक पता नहीं क्या-क्या बोलता रहा। अंत में आंखों में आंसू भरकर गांधीजी की मूर्ति की ओर बड़ी दीनता के साथ देखता हुआ खड़ा रहा।
लगा गांधी जी की मूर्ति से आवाज आई "पगले! मैं आकर क्या करूंगा?
बहुत पहले सुबोध गुप्ता के बनाए गए तीन बंदर और उन पर मेरा संदेश हुआ करते थे। शायद अब तुम्हें उनके बारे में कुछ याद भी न हो। दिन बदलते बदलते अब उन पर मुझे भी संदेह होने लगा है। वह यह कि एक बंदर कान बंद रखता है लेकिन वह बोल सकता है और देख सकता है। दूसरा बंदर आंखें मूंद लेता है लेकिन वह बोल सकता है और सुन सकता है। तीसरा बंदर भी वैसा ही मुंह बंद रखता है लेकिन देख सकता है और सुन सकता है ।
कुल मिलाकर वे कुछ नहीं करते और कर भी नहीं सकते। मैं भी वैसा ही हूं और अगर मैं आ भी गया तो चौथे बंदर की तरह सारा कुछ बंद करके बैठना होगा। अगर मैंने ऐसा नहीं किया तो बाकी तीन बंदर मेरे साथ जबरदस्ती वह सब कराएंगे। समझ में आया? फिर भी तुम्हारे हाथ में जो काम है उसे न करके मुझे क्यों आने को कह रहे हो?" शायद अंतिम वाक्य कुछ जोरों से सुनाई पड़ा।
उसे शायद बापू की मूर्ति की बातें सुनाई पड़ी इसलिए सिर हिलाते हुए आदमी ने अपने बाएं हाथ की तर्जनी को एक बार देखा। उसे पर काली स्याही का दाग था लेकिन उस उंगली में कोई हरकत नहीं थी। वह तर्जनी बिक चुकी थी, शायद यह बात याद आई और वह आदमी लंबे-लंबे डग भरते हुए वहां से चला गया।
डॉ0 टी0 महादेव राव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)
9394290207