दूरियों-नजदीकियों का भूगोल

माना, 

हज़ारों कोशिशों में भी 

नहीं पाट सकते वो तमाम रिक्तियां

जो महसूस की हैं हमने

ध्रुवों के दो अलग-अलग छोर पर खड़े होकर,


पर जब भी स्मरण करती हूं

तुम्हारी कोई भी बात..

तुम्हारा कोई सा भी ख्याल..

या फिर,,

तुम्हारा कोई सा भी चुप ,

यकायक बंधते चले जाते हैं

अनगिनत पुल

अनंत संभावनाओं के ,

द्रष्टित होनें लगते हैं एक साथ 

कई-कई क्षितिज

अपने मिलन के ,


और तब,,

नजदीकियों सिमट आता है

वो दूरियों का भूगोल भी,,है न !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश