सरर-सर उड़ जाती ऊंची आकाश में पतंग....!

अनुशासन का बंधन,

तब तब सधती,

फर्र फर्र सरर सर,

ऊंगलियों के इशारे

पर ठुनकती,

सधी डोर पर,

धरती से आकाश,

पकड़ती, ये पतंग

लहराती-बलखाती

कलाबाजियां दिखाती

एक इशारे पर एक धागे पर

ठुमकती नाचती इतराती।

रंगबिरंगी अनुठे नाम इसके

परियल, कानबाज, चांदबाज,

लाल, हरी, पीली, लहराती पूंछ

और ढग्गा इसके।।

है मस्त मलंग, नीलगगन में

हवा के सहारे विचरती पतंग

जब कट जाती तो स्वछंद

स्वत: निरंकुश उतरती धरती पर

लुट जाती, कटी पतंग कहलाती।।

पतंग बच्चों, युवाओं का  शौक

उड़ाने की कलाबाजी करती

मनोरंजन सबका होता जब होती

आकाश में जमकर पंतगबाजी।।


                   --मदन वर्मा " माणिक "

                    इंदौर, मध्यप्रदेश               

                   मो़नं. 6264366070