अंगद का पांव

जल धारा के आवेग में

अनेकों बह गये ।

मैं तट पर पैर जमाए

अभी खड़ा हूं ।

देखता हूं पीछे बहुत से

अब भी छूट गए ।

किस पर विश्वास करूं

बह जाने वालों पर, 

या पीछे छूट जाने वालों पर।

जो बह गए हें वह

नये रंग में रंग गए थे

पीछे छूटने वाले अपने

अपने पुराने इरादों पर अड़े थे।

और मै डगमगा रहा हूं

बह जाऊं या जम जाऊं।

कुछ अपनी सोच बनाऊं

या अंगद का पाॅव बन जाऊं।

अब भी बहती जलधार के 

तट पर खड़ा निश्चित नहीं कर पा रहा हूं

यह द्वंद मेरे व्यक्तित्व का हे 

या मेरे स्वार्थ का हे।

बहते बहते डूब जाऊंगा

या डूबते डूबते बच जाऊंगा।


बेला विरदी

1382, सेक्टर-18,

जगाधरी 

8295863204