आज मेरे राम अपने घर पधारे

क्षण प्रतीक्षा के सभी पूरे हुए है,

आज मेरे राम अपने घर पधारे।

मैं सितारों से कहूं स्वागत करे या

तोड़कर पथ में बिछा दूं मैं सितारे।

जो जन्म से ही रहे निष्पाप प्रभुवर,

जाने किस किस आत्मा के पाप भोगे?

मुक्त अभिशापों से सबको करने वाले,

जाने किस किस देह का अभिशाप भोगे?

कितने युग से किन अभागे जन के कारण,

तंबू के नीचे प्रभु ने दिन गुजारे।

प्रश्न मेरे मन को विचलित कर रहा है,

क्यों कठिन इतना है जग में राम होना?

त्याग का परिणाम क्यों वनवास हरदम,

दण्ड के ही योग्य क्यों  निष्काम होना?

तीनों लोकों पर विजय श्री पाने वाले,

अपने घर,अपनी प्रजा के हाथ हारे।

सिर्फ मेरे राम में सामर्थ्य था यह

दुख ग्रहण कर सुख के सब संकल्प त्यागे।

स्वप्न सब संधान पर करके न्यौछावर,

खंडहर होकर जगत का दान मांगे।

स्वयं के पक्ष में तमस का दान मांगा,

और प्रजा के भाग्य में मांगे सितारे।

अंत हो अवसाद की सुख का शुभारंभ,

अब परीक्षा कोई भी न शेष रखना।

मैं हथेली रख दूं जिस पथ में चलो तुम,

अपने पद पंकज वही अवधेश रखना।

हर हृदय पुलकित हुआ तव आगमन से,

दृग सजल मोती बहाकर पद पखारे।

अब मेरे सिय राम के जीवन में कोई

न विरह के क्षण, नही वनवास आए।

सारे जग को तृप्त करने वाली जोड़ी

प्रार्थना के स्वर में हमेशा मुस्कुराए

तुम सदा आराध्य रहना नाथ मेरे,

हम सदा ऋणी रहे राघव तुम्हारे।


गुंजा गुप्ता 'गुनगुन'

मऊ-उत्तर प्रदेश