अब हमें कोई नहीं हरा सकता

ऐसे युग में जहां देवताओं को भी निश्चित रूप से मानवीय हरकतों पर हंसना पड़ता है, ढोंगीपुर के विचित्र गांव में स्थित प्रतिष्ठित आराधना स्थल को एक अजीब पहेली का सामना करना पड़ा। यहाँ देवताओं की मेजबानी वोट माँगने वाले नेता करते हुए दिखाई देते हैं। मंदिर के द्वार उसी के लिए खुले है जो दान देने अथवा वोट बटोरने की क्षमता रखता है। यहाँ मेज़बान खूँटा गाड़कर बैठा है। भगवान से ऊँची उसका कटआऊट है। कभी-कभी तो उसके भीतर नवाजुद्दीन सिद्दिकी की आत्मा उतर आती और कहता – अपनुइच भगवान है। ऐसा भगवान जो पत्थर रूपी भगवान के भीतर प्राण फूँककर वोटों की बरसात करा दे।


'ढोंगीपुर मंदिर के प्राण प्रतिष्ठान' कार्यक्रम में फोटोशॉपी डिजिटलधारी फोटोजेनिकपगड़ीधारी, वोटों के लिए ललचाती आंखों वाले महाफेंकू स्वागत के लिए हाथ जोड़े सबका स्वागत कर रहा है। वह खुद को एक भक्ति के नकली लबादे में लपेटे रंगा सियार की तरह जो मिल जाए उसको लूटूँ की तर्ज पर चौकन्ना खड़ा है। वह घोषणा करता, "सभी महान और तुच्छ प्राणी इस पवित्र छत के नीचे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।" उसने अब तक असंख्य लबादे ओढ़कर उतार दिए हैं। भगवान का तो पता नहीं लेकिन वह हर साल सैकड़ों करोड़ों रुपयों का भोजन डकारने वाला निहायती गरीब और पूँजीपतियों की जेब भरने वाला शरीफ महात्मा है।


प्राण प्रतिष्ठान के दिन, ढोंगीपुर में भक्तों को छोड़ वीवीआईपी की भीड़ इकट्ठा हुई। जिसने जितना दान किया उसे प्राण प्रतिष्ठान के दिन उतनी नजदीक वाली सीट मिली। इन्हीं की देखा-देखी वहाँ बिल्ली, कुत्ते, लोमड़ी, सियार आदि भी दर्शन के लिए पहुँचे। सच्चे अर्थों में यही भगवान के दर्शनाभिलाषी थे। किंतु महाफेंकू ने उन्हें यह कहकर भीतर आने से मना कर दिया कि जब तक हम हैं, तब तक तुम्हारी क्या जरूरत है। क्या हम तुमसे कम हैं जो तुम्हारी जरूरत हमें आन पड़ी? हम वे प्राणी हैं जो एक ही मुख से म्याऊँ, भौ-भौ और दहाड़ भी सकते हैं। यहाँ तक कि चाटना, काटना, कुतरना, मसलना यह सब हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है। हम जैसे मल्टी सोशल एनिमल टैलेंट के रहते भगवान को तुम्हारी जरूरत कभी नहीं पड़ेगी।  


शीघ्र ही भक्तों की रंग बदलती कोटियों में फोटोजेनिक कोटि सबसे आगे आई। उन्हें भगवान से ज्यादा खुद की तस्वीर खिंचवाने का भूत सवार था। खुद को क्रॉप कर-कर के भगवान के साथ अपनी फोटो सोशल मीडिया में चेंप देते। उनकी भक्ति देखकर मानो ऐसा लगता जैसे घर में प्यार को तरस रहे बड़े-बूढ़े इस चेष्टा से प्रसन्न होकर झूम रहे हों। कोई पर्यटक बनकर घूम रहा है तो कोई , तस्वीरें खिंचवाने। कोई इतिहास में दर्ज होने के लिए मरा जा रहा है तो कोई इतिहास को खुद में गड़वाने के लिए मशक्कत कर रहा है। इन सबके बीच ढोंगीपुर से सीधा प्रसारण के नाम पर मीडिया वाले संशयवादियों और अंध-विश्वासियों के एक समूह को आपस में लड़वाकर अपनी टीआरपी बढ़ाने के सभी जुगाड़ लगाने में व्यस्त हैं।


यह दृश्य किसी आध्यात्मिक सर्कस जैसा लग रहा है, जहां दांव मोक्ष हैं, और कलाकार अनंत काल की तलाश कर रहे हैं। महाफेंकू फिर भी मुस्कुरा रहा है, उसका दर्शन इस विचार में डूबा हुआ है कि निश्चित रूप से यह सब एक खाली मंदिर से बेहतर है - भले ही ऐसा लगे कि देवता अपने शाश्वत मुखौटे के पीछे हँस रहे हैं। पवित्रतापूर्ण हुड़दंग के बीच, जहाँ-तहाँ नास्तिक समाज आज अपने को बचाने में लगा है, पता नहीं कब उनका बैंड बज जाए उनके नेता की चाल अस्तित्वगत विडंबना से बोझिल हो गई है। वे ऐसे खड़े हैं मानो प्राचीन साज-सज्जा से घिरे हों, उन्हें छूने की मनाही हो, वे विश्वासियों के समीप होने का प्रयास कर रहे हैं। अब उन्हें पूरा विश्वास हो चला है कि यही आराधना स्थल आगे चलकर भूखे को रोटी, बेरोजगार को रोजगार और कलंकितों को वोटों से मालामाल कर प्रांत की सभी समस्याओं के हेल्पलाइन बनकर आगे आयेंगे। 


डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657