सहारनपुर। राम मंदिर के उद्घाटन के इस शुभ अवसर पर हम स्वयं को कितना गौरवान्वित और भाग्यशाली महसूस कर रहे हैं कि हम उस पल की साक्षी बना रहे हैं। जिस दिन का स्वप्न हमारे पूर्वजों ने अपनी डब-डबाई आंखों से देखा था। लेकिन हमें इस बात को भली-भांति याद रखना चाहिए कि यह अलौकिक दिन अनायास ही नहीं आया है। वरन् इसके पीछे तो हमारे असंख्य राम-भक्तों, साधु संत-महात्माओं, कारसेवकों व नवयुवकों का उस दौर में उनका अतुलित बलिदान छिपा है। न जाने कितने ही लोगों ने, राम मंदिर आंदोलन के इस यज्ञ में अपने प्राणों की आहुतियां दे दी। न जाने कितने लोगों ने अपना घर छोड़ा, लड़ाइयां लड़ी, सरकार की यातनाएं झेली और कितने ही निर्दाेष लोग अनगिनत दिनों तक जेल मे बंद रहे।
ऐसी ही एक कहानी, उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के एक छोटे से कस्बे रामपुर मनिहारान (मोहल्ला-शिवपुरी)के रहने वाले पंडित उपेन्द्र शर्मा पुत्र मामचंद शर्मा की है। जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन के दौरान रामपुर से अयोध्या तक की यात्रा की और आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए राम मंदिर के निर्माण के लिए संघर्ष किया और सन 1990 से 1992 के बीच तीन बार सरकार की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध गिरफ्तारी दी और जेलों में बंद रहे।
ऐसे असंख्य नवयुवकों की उसे दौर में अनगिनत अदृश्य क़िस्से कहानियाँ है जो इतिहास के पन्नों में सिमट कर कहीं गुम हो गयी, परंतु आज के दिन हम उन सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करते हैं जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन के लिए अपना सर्वाेच्च बलिदान से लेकर गिलहरी योगदान दिया।हमारी नई पीढ़ी आप जैसे सनातनी योद्धाओं की सदैव ऋणी रहेगी।