मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत...
मेरी पीड़ा को कभी समझ लो तथागत....
खुद को खुद से दुर करने में लगी हूँ
मुझे खुद से कभी मिला दो तथागत....
संभलना नही आया मुझे अभी तक
टुटने से पहले ही समेट लो तथागत...
मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत...
मेरी पीड़ा को कभी हर लो तथागत
अंधेरी रातों से डर लगता है मुझे, तुम यूँ
बिन बताएं घर से निकला न करों तथागत...
राहें बहुत परेशानियों से भरी हुई है हाथ
पकड़कर कांटों पर चलना सीखाओ तथागत...
मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत...
मेरी खामोशी को कभी सुन लो तथागत...
अकेले जीवन गुजारना संभव नहीं
बीतने से पहले हाथ थाम लो तथागत...
मेरी गलियों से कभी तो गुजरों तथागत...
यशोधरा राह तके अब घर लौट आओं तथागत...
मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत...
यशोधरा पुकारे कभी सुन लो तथागत...
~ आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश