जज़्बात

रूहानी जज़्बात जगा गया कोई,

मुझको मुझसे ही चुरा गया कोई।


बरसों से प्यासा था ये मन मेरा,

आब ए हयात पिला गया कोई।


बेख़बर थे हम खुद की पहचान से,

हमें हमसे ही मिलवा गया कोई।


तज़किरा क्यों न करें ज़माने से,

बेवफाई  को झुठला गया कोई।


खुश हैं हम उसकी शोहबत में ऐसे,

ज्यों हसीं ख़्वाब दिखा गया कोई।


डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)