संतुष्टि

          "वाह ! क्या आनंद ही आनंद है। ऐसा लग रहा है कि यहीं ठहर जाऊँ कुछ दिनों के लिए। चारों तरफ हरियाली है। सुंदर–सुंदर फूलों के बगीचे ! ये सुंदर वादियाँ ! नदियाँ ! झरने ! मन के लिए ये काफी सुकूनदायक हैं।            ट्रिन.....ट्रिन......! मोहन के द्वारा कॉल उठाते ही..... रमा पूछती है कि सुनिये जी, संतुष्टि मिली क्या ? मोहन का जवाब था ,अभी तक तो नहीं मिली। जब मिलेगी तो जरूर बताऊँगा। ‌‌कहते हैं ना....जब इंसान की शादी हो जाती है और पत्नी को कभी घूमाने साथ में न ले जाया जाये ,तब तक शांत नहीं बैठती। मोहन का भी यही हाल था। 

           मोहन और श्याम छत्तीसगढ़ से बाहर गुजरात घूमने गए थे। 

          "भाई मोहन ! इससे पहले तो तुम बड़े खुश नजर आ रहे थे। बड़े–बड़े रेस्टोरेंट में तूने  डिनर किया। समुद्र की लहरों ने तो मन मोह लिया। एक से बढ़कर एक कह रहे थे। यहीं रुकने का मन भी कर रहा था तुम्हारा। अब क्या हुआ भाई ? तुम्हें संतुष्टि नहीं मिली क्या ? और ये क्या भाभी जी का कॉल बार–बार क्यों काट रहे हो ?" श्याम ने कहा।

मोहन तभी तपाक से बोला- "भाई श्याम तुम्हें संतुष्टि मिली क्या...?"

          "हाँ... हाँ...। दोस्त मुझे तो संतुष्टि मिल गई।" 

          "कहाँ पर है भाई संतुष्टि, मुझे भी बता दे यार ? तेरी भाभी मेरा प्राण खा रही पूछ-पूछ के। पूरे गुजरात में पता लगा लिया लेकिन संतुष्टि मिली ही नहीं। सब मुझे पागल समझ रहे हैं।" 

          "हाँ,  तू पागलों जैसा सवाल करेगा तो क्यों न समझेंगे ?" मुँह बनाते हुए श्याम बोला।          "मोहन ! कैसी बातें कर रहा है तू। हर जगह संतुष्टि है; सुकून है; तू महसूस तो कर मेरे यार।

        "ट्रिन...ट्रिन....! अरे मोहन कॉल तो उठा, भाभी जी का होगा।"

         "नहीं भाई श्याम फिर वो पूछेगी, संतुष्टि मिली क्या करके ? मैं क्या जवाब दूँगा, जब तक मुझे नहीं मिलेगी, मैं कॉल नहीं उठाऊँगा।"          

          "अरे पागल ! तो बोल देना, मिल गई संतुष्टि करके। बहुत मजा आ रहा है करके। देख तू नहीं बोलेगा तो मैं बोल दूँगा कि तू झूठ बोल रहा है।" 

        "नहीं...नहीं.... । तू भी पागल हो जायेगा। भाई तेरी भाभी सुकून वाली संतुष्टि की बात नहीं कर रही है।

"तो फिर....?" 

        "संतुष्टि फाइव स्टार रेस्टोरेंट का नाम है। वहाँ की रसमलाई बहुत ही फेमस है।" 

"पर इस गुजरात में तो संतुष्टि नाम का कोई स्टार रेस्टोरेंट नहीं है।" श्याम का मुँह खुला का खुला रह गया।

लेखिका

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़ 

Priyadewangan1997@gmail.com