युद्ध के जनमानस पर बढ़ते प्रभाव

युद्ध कहीं भी हो, वह न केवल उन देशों को तबाह करता है जिन देशों के बीच यह लड़ा जाता है, बल्कि युद्ध का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते समूचे विश्व को महंगाई का सामना करना पड़ा बल्कि तेल और ऊर्जा का संकट भी देखने को मिला। यूूक्रेन और रूस से खाद्यान्न की सप्लाई चेन टूटने से यूरोपीय देश ही नहीं बल्कि गरीब अफ्रीकी देशों को भी संकट का सामना करना पड़ा। 

इजराइल-हमास युद्ध के चलते पश्चिमी एशिया में नए सिरे से उत्पन्न भू राजनीतिक तनाव ने आर्थिक और नीतिगत जोखिम काफी बढ़ा दिए हैं। अगर मौजूदा संघर्ष में वैश्विक शक्तियां कूदीं तो हालात बहुत भयंकर हो जाएंगे। बड़े तेल उत्पादकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से उससे कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं। अगर युद्ध लम्बा खिंचा तो तेल की उपलब्धता और उसकी कीमत दोनों को प्रभावित कर सकती हैं। 

भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत से भी अधिक तेल आयात करता है। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते भारत ने रूस से सस्ते में तेल खरीदा जिससे भारत काफी फायदे में रहा लेकिन अब पश्चिमी एशिया के संघर्ष ने आर्थिक परिदृश्य को बदलने की आशंका पैदा कर दी है।

कच्चे तेल की कीमत बढ़ने के बाद दबाब में आई तेल कंपनियां पैट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ौतरी कर सकती हैं। भारत में पैट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का मतलब है रोजमर्रा की चीजों में महंगाई बढ़ना। यानि आपके बटुए पर दबाव बढ़ेगा। वैश्विक परिदृश्य कुछ ज्यादा अच्छा नहीं है। 

अगर भारत का आयात खर्च बढ़ा तो राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 प्रतिशत के स्तर पर रखने का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो सकता है। भारत इस समय तेजी से 5जी इंटरनेट सेवा पर काम कर रहा है और देश के कई शहरों तक लोगों को ये सुविधा मिल रही है। वहीं बचे हुए शहरों में भी 5जी कनेक्टिघ्टी पहुंचाने का काम चल रहा है। 

ऐसे में इजराइल-हमास युद्ध के चलते इंपोर्ट महंगा होने के आसार हैं। जिसके चलते देश में 5जी टेक्नोलॉजी का विस्तार करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध की वजह से इंपोर्टेंड 5जी नेटवर्क साजो-सामान की लागत 2,000 करोड़ रुपये से 2,500 करोड़ रुपये तक बढ़ सकती है। इजराइल-हमास के बीच युद्ध लंबा चलता रहा तो ऐसे में रुपया डॉलर के मुकाबले 3-4 फीसदी तक गिर सकता है। 

अगर ऐसा हो गया तो टेलीकॉम कंपनियों के लिए विदेशी खर्च महंगा हो जाएगा और मुनाफे में भी कमी आ सकती है। विदेशी कंपनियां जैसे नोकिया, एरिकसन और सैमसंग ये टेलीकॉम गियर भारत को उपलब्ध कराती हैं। सबसे तेज 5जी कवरेज देने के लिए टेलीकॉम कंपनियों के बीच होड़ है और अब देखना होगा कि आगे कैसे हालात रहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह जंग ग्रहण की तरह है।

 युद्ध के कारण भारत में महंगाई बढ़ सकती है। जिसके कारण कच्चे तेल की कीमत में तेजी आएगी। कच्चे तेल की कीमत पहले से बढ़ी हुई है, इस युद्ध के कारण स्थिति और बिगड़ सकती है। देश की तरक्की को सीधे प्रभावित करने वाले कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर अभी कोई चिंता नहीं है लेकिन भारत पर इसका असर दिखने लगा है। खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें आम आदमी की कमर तोड़ सकती हैं। भारत सरकार ने स्थिति का आकलन पूरी तरह किया है और अन्य तेल उत्पादक देशों से सम्पर्क साधा है। 

वेनेजुएला और रूस से कच्चे तेल की आपूर्ति को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। युद्ध लम्बा खिंचा तो इसका असर भारत के आटोमोबाइल सैक्टर, गारमेंट, फूड और हस्तशिल्प उद्योगों पर पड़ेगा। दिल्ली के पड़ोस में गुरुग्राम जिले में 12 हजार आटोमोबाइल उद्योग हैं। इसके अलावा 200 फूड और हस्तशिल्प उद्योग हैं। युद्ध के चलते यहां से इजराइल की सप्लाई रुक गई है।

 कम्पनियों में जो तैयार माल है उसे भी नहीं भेजा जा रहा है क्योंकि दिल्ली से इजराइल उड़ानें रद्द हैं। नए आर्डर आने बंद हो चुके हैं। उद्यमियों को त्यौहारी सीजन में नुक्सान उठाना पड़ रहा है। फूड उद्योग की समस्या यह है कि वह तैयार माल को ज्यादा दिनों तक गोदामों में नहीं रख सकता। भारत और इजराइल के बीच गारमेंट एक्सपोर्ट का काम बड़े स्तर पर होता है।

 युद्ध के चलते इन्हें भी नुक्सान उठाना पड़ रहा है। इजराइल में कई वैश्विक टेक कम्पनियों के दफ्तर हैं। अगर युद्ध लम्बा चला तो यह कम्पनियां वहां से अपना काम समेट कर दूसरे देशों में जा सकती हैं। टेक कम्पनियों के लिए भारत इस समय निवेशकों के लिए आकर्षक गंतव्य स्थल है। 

पिछले कुछ वर्षों में भारत विदेशी कम्पनियों की पहली पसंद बनकर उभरा है। चीन से भारत शिफ्ट हो रही कम्पनियों को इस युद्ध के कारण लागत बढ़ने का डर है। इन कम्पनियों में लाखों कामगार कार्य कर रहे हैं। भारत सरकार को इन कम्पनियों की चिंताओं को दूर करना होगा।