भरा हुआ है गुबार दिल में,
रुकावटें हैं लक्षित मंजिल में,
पर कहीं का गुस्सा
कहीं निकलना उचित होगा?
बाप के गलती की सजा
क्या बेटे को देंगे?
नहीं यदि वो सही राह में हो,
लेकिन बाप की गलती पीढ़ी दर पीढ़ी
बेटा दोहरा रहा है,ढो रहा है,
तब वो सजा के ही काबिल है,
पुरखों का पाला गया घृणा
अनवरत उनकी मंजिल है,
पीड़ित पक्ष का गुस्सा
नाजायज नहीं होता,
अहंकारी घुट घुट आंसू नहीं रोता,
पर कुछ लोग भोले होते हैं,
अत्याचारों को भूल
नए नए सपने संजोते हैं,
मगर सपनों को तोड़ने की कोशिशें
असहनीय होता है,
तब कभी न कभी फूट सकता है
लावा की तरह गुबार,
जो खाक में मिलाने के लिए
होता है काफी,
हां दमित, शोषितों के मन में
अभी भी भरा हुआ होगा लावा,
जिसे विस्फुटित हुए बिना
नहीं समझना चाहते,
तथाकथित उच्च, दबंग,
आततायी, जातिवादी, अत्याचारी,
मानसिकता के लोग,
जो अपनी हजारों सालों की सनक
लेके चल रहे हैं अभी भी
इस संवैधानिक युग में।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग