लोकतंत्र का गुणगान

ठगा ठगा सा हां एक बार फिर मैं ठगा सा वोट किसको दूं ना कोई लगे मुझे सगा सा.. 

जात से ना पात से ना किसी जज़्बात से, नेता पास हमारे आते बस वोटों की घात से..

आएगा आएगा चक्कर लगाएगा जब तक चुनाव नहीं हो जाते यह बेशर्मों सा मुस्कुराएगा.. 

खुद जीता तो लोकतंत्र की जीत बताएगा , हारा तो रो रो कर ढोंग दिखाएगा, 

निकालेगा  जुलूस तालियां बजवाएगा फिर नेता हमारा राजधानी में जाकर ऐश फरमाएगा...

क्षेत्र का विकास बस एक नारा बन कर रह जाएगा, पांच साल तक अपनी शक्ल दिखाने को यह हमको तरसाएगा...

ठगा ठगा सा हां एक बार फिर मैं ठगा सा वोट किसको दूं ना कोई लगे मुझे सगा सा.. 

व्यापम,राशन,डंपर,पटवारी घोटालों की लाइन है, फ्री में बटती रेवड़ियों से चलती इनकी दुकान है..

कहते हैं सरकार इसको थोपती जनता पर अपनी मर्ज़ी, जनसेवक के नाम पर बन बैठे वो राजा हैं, प्रदेश की व्यापारिक गतिविधियों में ये साजा हैं..

पांच साल में संपति सौ गुना हो जाती है क्या विधायक की तनख्वाह सरकार इतनी चुकाती है ,गरीबों के लिए लड़ने वाला युवा ना जाने कैसे अमीर बन जाता है, भैया फिर राजनीति का भावी भविष्य कहलाता है...

ठगा ठगा सा हां एक बार फिर मैं ठगा सा वोट किसको दूं ना कोई लगे मुझे सगा सा.. 

गुंडे से मवाली से,लाठी के जोर से,गोलियों के शोर से,दंगे-फसाद से, धार्मिक उन्माद से, बाजुओं की आजमाइश से,परिवारवाद की फरमाइश से,अमीरों के चंदे से, बरी हुए फांसी के फंदे से, बन बैठे नेता जी लोकतांत्रिक तरीके से...

देश की अर्थव्यवस्था को दीमक से चाटते ये संवैधानिक तरीके से..

उंगली पर लगा नीला निशान कुछ दिन में धुंधला पड़ जाएगा, राजनीति का यह गंदा खेल हमारे प्रदेश को पता नहीं कहां ले जायेगा..

ठगा ठगा सा हां एक बार फिर मैं ठगा सा वोट किसको दूं ना कोई लगे मुझे सगा सा..

अभिषेक दीक्षित

इंदौर- 9303303222