दीपो का त्यौहार है आया हर तरफ उजियारा है
जगमगा रहा गली मोहल्ला फिर मन में क्यों अंधियारा है
द्वार रंगोली से सजी हैं,जल रही है फुलझड़ी
मुँह मीठा कराते फिरते,पर मन क्यों सबका खारा है
बन रहे पकवान घर घर, बाजारो में भी रौनक छाई है
कोनें बैठे गरीब सोचें, क्यों वो किस्मत का मारा है
लक्ष्मी सी हर नारी दिखती, सुंदर पहने परिधान है
पहले जैसी अब कहाँ पूजा अर्चना,रील्स बनाने में सबका रूझान है
करते अपनेपन का दिखावा, गले सबको लगाते हैं
बेशक दुनियाँ से जीत गये हैं पर अपनों से ही हारे हैं...!!
स्वरचित और मौलिक
सरिता श्रीवास्तव "सृजन"
अनूपपुर मध्यप्रदेश