भ्रातृ द्वितीय दिवा बहिनी प्रिय, तात बँधे भुवि संस्कृति डोर।
सोदर भाल सजे शुभ कुंकुम, भोज भरे सुख मान अँकोर।।
धर्म सु-कर्म वरें, युव क्रांति मना, रह निर्मल मूल्य विभोर।
आयु बढे, जब पाणि स्वसा, रखती शुभ चावल बुद्धि अँजोर।।
उन्नति भारत उत्स वहीं, जहँ स्नात सभी यमुना संग ज्ञान।
भानु लली द्वय-आब सजी, धर वारि स्वरूप रखे युग भान।।
स्नेह विभा व्रज मंडल की, रखती युव राह सदा गतिमान।
भोज सु-स्वादु बने बहिनी गृह, प्राशन में परमार्थ वितान।।
प्रेरक जीवन दिव्य रखें द्वय, भ्रात स्वसा लगते बिबुधान।
स्नेह सु-न्योत यमी लिखती तब,काल रचें शुभ नव्यपुरान।।
दूज हुए तम सेजन मुक्त, यमी शुभ बोल बने वरदान भोज प्रसाद लिए,
यम घोष करें,निज भाव विमोक्षअहान।।
मीरा भारती