सफर

हां जारी है सफर,

पैदल,बस की या फिर ट्रेन की,

मुझे यकीन है कोई तो कर रहा होगा

जिंदगी का सफर साथ प्लेन की,

सफर होता जरूर है अनवरत

जब तक आ न जाएं मंजिल,

संतुष्ट न होइए

क्योंकि कब कहां हो जाये जीवन बोझिल,

सफर ही कर सकता है

जीवन की मंजिल का अंत,

निर्माण उतना मुश्किल भी नहीं है

यदि छुपा न हो विध्वंस,

सृजन और निर्माण

जीवन के है दो पहलू,

पर कोई क्या कह सकता है?

कोई नहीं बता सकता कि

आगे क्या हो सकता है,

कोई हंस सकता है कोई रो सकता है,

गाड़ी जहां थमी रुक सकता है जीवन

कोई बता सकता है क्या ग्यारंटी है,

अंत कुछ भी हो सकता है

भले ही वो कोई संतरी या मंत्री है,

समय किसी के लिए रुक नहीं सकता,

वो ताकतवर के सामने झुक नहीं सकता,

सफर सतत चलने का नाम है,

कर्मों में ही छुपा अंजाम है,

तो कोशिश करें सफर जारी हो,

चाहे व्यक्तिगत कितनी भी लाचारी हो,

जिंदगी का सारा समय कर दो समर्पित,

उत्थान के लिए सब कुछ हो अर्पित,

सफर में आते हैं कई पड़ाव,

बनते हैं दिल से रिश्ते गहराता है जुड़ाव,

इस जीवन में हर कोई कर रहा सफर,

कोई अच्छाई को लेकर,

कोई गहराई को लेकर,

कोई बुराई को लेकर,

सब लगे हुए हैं जीवनपथ पर,

जारी है द्वंद्व के साथ सफर।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग