इंदौर के शेर कहे जाते थे स्व. सुरेश सेठ....

शुरु से दबंग, जुझारू और कर्मठ कॉलेज जीवन की राजनीति से अपनी छाप छोड़ते हुए आगे बढ़ते रहे। इंदौर के महापौर बने। पूरे शहर को बल्ब से ट्युब लाईट की रौशनी में दुधिया रौशन करने वाले और अनेक सौगातें देने वाले अनेक आंदोलनों में भाग लेने वाले नेता रहे हैं स्वर्गीय सुरेश सेठ। कांग्रेस के दबंग विधायक रहे, मध्यप्रदेश सरकार की केबिनेट में स्वायत्त शासन मंत्री रहे। जब स्वर्गीय प्रकाशचंद सेठी सांसद का चुनाव जीते तब चुनाव संचालन की कमान स्वर्गीय सेठ के हाथों में थी, इसी वजह से सेठी चुनाव जीते थे।

स्वर्गीय सेठ ने जनहित में अनेक कार्य किये। जितनी जनहित याचिकाऐं जनता के हित में इनके समय  दायर

हुई उतनी फिर कभी नहीं हुई। एक बार विरोध स्वरूप विधानसभा परिसर में हाथी तक ले गये थे। अनेक प्रकरण चर्चा में रहे। 

धारा 371 के विरोध का संकल्प भी पहली बार कांग्रेस में रहते मध्यप्रदेश विधानसभा में पास कराया था। इंदौर की धरोहर राजबाड़ा को बिकने से बचाया। एसपी कार्यालय की जमीन के लिए लड़े, लालबाग को बचाया। बच्चों के लिए चाचा नेहरु अस्पताल को बनवाने में योगदान दिया।  एक व्यक्ति दो संवैधानिक पद के खिलाफ भी लड़ाई लड़ते रहे। उनके आखरी समय में सभी दलों के नेतागण आदर व सम्मान के साथ इकट्ठे हुए थे।

बेबाकपन और स्पष्टवादिता के कारण उनसे कुछ लोग नाराज भी हो जाते थे। वह इंदिराजी और राजीवजी के प्रिय भी रहे। मेडम इंदिराजी उन्हें मिस्टर सुरेशजी कहकर संबोधित करती थीं। वह जनहित में जमीन पर उतरकर संघर्ष करने वाले नेता रहे। 

उन्होंने बिना पोस्टर, बिना झंडे के पैदल गली-गली प्रचार करके निर्दलीय चुनाव लड़कर इंदौर भाजपा के प्रत्याशी को विधानसभा चुनाव में भारी मतों से हराया था। उन्होंने हर चुनौती का डटकर सामना किया। उनका केंद्रीय नेताओं, प्रभावी मंत्रियों तथा देश के अन्य दलों के नेताओं से भी सौहार्द स्वरुप संपर्क रहता था। उनकी दबंगता के प्रभाव के कारण अनेक नेता उनके सामने खामोश रहते थे।

मेरे स्वर्गीय पिताजी से कॉलेज के जमाने से मित्रता थी। उस समय इंदौर के स्वर्गीय महेश जोशी भी छात्रसंघ राजनीति में सक्रिय थे। पिताजी दोनों के साथ रहे। मेरे पिताजी स्वर्गीय एमपी वर्मा और अंकल। प्रोफेसर एसपी वर्मा का प्रेस व पत्रकारिता से सरोकार रहा। 1970-80-90 के समय में जागरण, स्वदेश, विश्वभ्रमण, नवभारत, इंदौर  समाचार, भास्कर, अपनी दुनिया इंदौर में देश-विदेश, नगर की खबरें, संपादकीय, बजट,चुनाव व विशेष घटनाओं के समय सहायक संपादक के रुप में कार्य किया। 

इंदौर समाचार में उनके बाद सन् 1988 से मैंने भी यही कार्य करके स्वर्गीय सेठ साहब से जुड़ा। उनके लिए लिखा, सीखा, आशीर्वाद पाया। यह " माणिक " उपनाम उन्हीं ने  सम्मान के बतौर दिया और कहा इस उपनाम के साथ ही लिखो। डेली कालम " राजनीति सड़ीगली " और संपादकीय व लेख,व्यंग्य, तुरंत टिप्पणी, कविताएं आदि लिखी। 

सन् 2006 में मेरे पिताजी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने कहा कोई भी आवश्यकता हो, समस्या हो, मुझे रात हो या दिन कभी भी फोन कर देना चिंता नहीं करना। उनसे मिलने जाते तो पास बिठाते और बड़ी देर तक चर्चा करते थे अनेक विषयों पर। उनके निजी सचिव रहे आर. पी. राठौड़ हमारा पूरा ध्यान रखते थे। वह सबसे अलग नेता थे। जो कह दिया वह पत्थर की लकीर होता था। आखरी समय तक अनगिनत लोगों के कार्य करते रहे। आज भी उनकी दबंगता, निडरता की छाप, इंदौर शहर की जनता नहीं भूली हैं। वह इतने लोकप्रिय नेता थे कि उन्हें जनता " इंदौर का शेर सुरेश सेठ " के नाम से बुलाती थी।


    - मदन वर्मा " माणिक "

        इंदौर, मध्यप्रदेश