जब तक सब्र करना नही आता

जब तक सब्र

करना नही आता,

तब तक हम

लड़ते हैं,

झगड़ते हैं ,

बहस करते हैं

और अंत में रोते हैं।

ये सिलसिला

अनवरत

चलता ही रहता है,

लेकिन

एक वक़्त के बाद 

बहस करने की ताक़त

नहीं बचती,

लड़ने की इच्छा

नही होती,

तब मौन में ही

सुकून मिलता है,

तब भीड़ से कहीं दूर 

बंद कमरा ही

अच्छा लगता है।

सुमंगला सुमन

मुंबई, महाराष्ट्र