गाजीपुर (ब्यूरो -गौरीशंकर पाण्डेय सरस) : धवल धार लिए अविरल प्रवाह से बहती कल- कल निनादिनी भगवती भागीरथी (गंगा) के पावन तट पर स्थित जिला गाजीपुर अपनी धार्मिक परंपरा रीति रिवाज भाईचारा एवं ऐतिहासिक राजनीतिक और सामाजिक फलक पर किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
अति प्राचीन पुरातन सनातन कालखंड से लेकर अब तक के धार्मिक याज्ञिक अनुष्ठान पूजा ध्यान के शेष विशेष में अपने आप को स्थापित कर स्मृति पटल पर गाजीपुर जिला की अमिट पहचान है ।बात चाहे ऋषि मुनियों के कठिन तप ध्यान साधना की हो अथवा मातृभूमि की बलि वेदी पर प्राण न्यौछावर की।वीर चक्र से लेकर परम वीर चक्र के अलावा देश हित में शहीद होने वाले जाबांजों की एक लंबी सूची है।सब में हमारा जिला अपने आप को अव्वलपन होने का अहसास कराया है।
यूपी बिहार की सीमा से सटे पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजा मांधाता के गढ गाजीपुर का कण-कण गौरव से गौरवान्वित है। जनपद की चतुर्दिक दिशाओं में गांव से लेकर कस्बों और शहरों तक स्थित मठों -मंदिरों- शिवालयों में बजते शंख -घंट-घड़ियालों की ध्वनि के साथ जहां हर- हर महादेव का उच्च उद्घोष सर्वत्र सुनाई देता है वहीं इसके इतर अन्य धर्मावलंबियों द्वारा अपने ईष्टों के प्रति विशिष्ट प्रार्थना होते भी देखा जा सकता है।
ऋषि जमदग्नि की जमानियां अगर कठिन तपस्या के लिए जग विदित है और ऋषि परशुराम की दृढ़ संकल्प पितृ भक्ति यश गाथा से भरी पड़ी है तो जनपद के विविध हिस्सों में भूगर्भ से स्वयं प्रकट हुई देव प्रतिमाएं लंबे अरसे से आस्था विश्वास से पूजनीय और बंदनीय हैं। जनपद का महाहर धाम तो इसका अकाट्य उदाहरण है।
लहुरी काशी की संज्ञा से विभूषित महाहर धाम त्रेता युग के महा प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ की छावनी के रूप में आज भी अविस्मरणीय है। महाराजा दशरथ के शब्द वेधी बांण द्वारा ऋषि कुमार श्रवण की हत्या का साक्षी बना पुरैना तालाब भी आज भी यथा स्थान मौजूद है। जिसके पावन तट पर महाराजा दशरथ के शब्द बेधी बाण से जल भरण करते समय ऋषि कुमार श्रवण का प्राणांत हुआ। धाम स्थित मंदिर गर्भ गृह में महाराजा दशरथ द्वारा स्थापित युगल मूर्ति में भगवती पार्वती के कोमल ओठ पर भगवान शंकर की स्पर्श करती अंगुलि अपने आप में अद्भुत तो है ही साथ ही पार्वती के प्रति भगवान शंकर के अकाट्य प्रेम प्राकट्य का उत्कृष्ट उदाहरण भी है।
वेदांग दर्शन के मुताबिक ऐसी देव मूर्ति की स्थापना किसी सामान्य राजाओं द्वारा संभव नहीं है।इसका स्थापना कार्य किसी चक्रवर्ती सम्राट द्वारा ही संभव है। जो राजा दशरथ द्वारा ही स्थापित होने की पुष्टि करतीं है।
गहन जंगलों से घिरा क्षेत्र महाहर का सुदूरवर्ती इलाका अवध नरेश के शिकार के उपयुक्त था।जो अवध से चलकर यहां आते रहते थे।चार वर्णों के मेल से मरदह शब्द की निष्पत्ति भी महाहर को राजा दशरथ का क्षेत्र होने की पुष्टि करता है।जैसे:- म+र+द+ह = म=महा। र=राजा। द=दशरथ। ह=है ।अर्थात यह क्षेत्र महाराजा दशरथ का ही है।यह एक पुख्ता प्रमाण के रूप में है।
हमारा जिला गाजीपुर अध्यात्म ज्ञान और वैराग्य का वह उद्गम स्थल है जहां से देश समाज को नई दिशा मिली। जिसके आलोक में मानव मन की विकृतियों एवं कुंठाओं का दहन हुआ और ईश्वर शक्ति के प्रति भक्ति और श्रद्धा विश्वास का बीजारोपण हुआ। ऐसे महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमारा जिला हमेशा याद किया जाएगा।
जनपद के अनेकानेक अद्भुत अलौकिक और अकल्पनीय जन श्रद्धात्मक केंद्रो में सुमार सिद्ध पीठ भुड़कुड़ा और शक्ति पीठ हथियाराम की आश्चर्यजनक किंतु सत्य जनश्रुतियां लोगों में आज भी अटल विश्वास पैदा करती हैं।झूठ छल कपट के पथ पर चलकर भुड़कुड़ा में कसम खाना तो रुह कंपा देने वाला है। जबकि हथियाराम मठ स्थित बुढ़िया माई का दर्शन और मनवांछित फल प्राप्ति का अदृश्य आशीर्वाद आज भी अविस्मरणीय है।साथ ही गंगा मां द्वारा प्रदत्त मठ में मौजूद आशीर्वाद कटोरा तो पीठाधीश्वरों को कसौटी पर खरा उतरने का माप दण्ड है।
गाजीपुर जनपद महात्मा बुद्ध के बौद्धिक ज्ञान प्रसार के प्रमुख केन्द्रों में से एक है औड़िहार के सैदपुर भीतरी स्थित बौद्ध स्तूप इसका प्रमाण है। मध्यकालीन मुगल बादशाहों के शासनकाल का अगर गवाह है जनपद गाजीपुर तो भारतीयों पर ब्रिटिश हुकूमत के जुल्मो-सितम की दर्द भरी कहानियों का भी साक्षी है। आजादी के दीवानों के अविस्मरणीय गाथाओं की याद दिलाता मुहम्मदाबाद का शहीद पार्क आज भी देशभक्ति का मिसाल है। एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा गांव गाजीपुर का गहमर आज भी बेमिसाल है।
गंगा के तट पर स्थित कुर्था के सिद्ध संत पवहारी बाबा आश्रम की महिमा का भला क्या कहना। सर्वविदित है कि पवहारी बाबा ने इसी स्थान पर अग्नि समाधि लेकर उक्त स्थान के कण-कण को सदा सदा के लिए धन्य कर दिया। यही वह तपोभूमि है जहां तप साधना में लीन संत पवहारी बाबा के दर्शन के निमित्त आए स्वामी विवेकानंद जी को तीन महीने तक इंतजार करना पड़ा था।
आखिरकार दर्शन उपरांत संत पवहारी बाबा का आशीर्वाद ग्रहण करने के बाद ही तेजस्वी युवा संत विवेकानंद जी शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने गए। राजनीतिक क्षेत्र में अबतक ज्ञात अज्ञात राजनीतिक मर्मज्ञों में किसानों के मसीहा स्वामी सहजानंद सरस्वती को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता , जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में मुख्य भूमिका निभाते हुए देश की दिशा और दशा का नेतृत्व किया।किसान को भगवान का रूप माना और किसान आंदोलन को धार एवं ऊर्जा दोनों प्रदान किया। जिले की मुख्य रूप से दो भाषाएं (हिन्दी और भोजपुरी ) साहित्य को समृद्ध और अक्षुण्ण बनाने में यहां के साहित्यकारों रचनाकारों का महत्वपूर्ण और अविस्मृत योगदान है।