कर्नाटक की पिछली सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं तथा परीक्षाओं में हिजाब पर लगाया प्रतिबंध मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हटा दिया है। चुनने की आजादी का हवाला देते हुए इस आशय के जारी आदेश के तहत बैन को हटाये जाने का हिन्दू संगठनों ने विरोध किया है जो कि अपेक्षित था। मुमकिन है कि यह विरोध और भी बढ़े परन्तु यह कदम सराहनीय है।
वैसे बेहतर तो यहीं होगा कि इस बाबत सारे विवादों को दरकिनार कर हिजाब चुनने की आजादी का स्वागत किया जाये। उल्लेखनीय है कि 2021 में भारतीय जनता पार्टी सरकार की पिछली सरकार ने कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों और हर तरह की परीक्षाओं में हिजाब लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। पहले से हिन्दूवादी संगठन इसकी मांग कर रहे थे।
कुछ मुस्लिम संगठन इसके विरोध में कर्नाटक हाईकोर्ट गये थे। वहां उनकी मांग न माने जाने के कारण उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहकर मांग को खारिज कर दिया था कि हिजाब इस्लामी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। वहां के अल्पसंख्यक समुदाय को इससे घोर निराशा तो हुई थी, बड़ी संख्या में लड़कियों ने स्कूल-कॉलेज जाना तक छोड़ दिया था।
विभिन्न परीक्षाओं में भी उनकी तादाद में गिरावट आई थी जो चिंता का विषय था। इसका प्रारम्भ उडुपी जिले के एक शासकीय कॉलेज से हुआ था जहां 1 जुलाई, 2021 को यूनिफॉर्म लागू कर दिया था। अल्पसंख्यक लड़कियों ने इसे मानने से इंकार कर दिया था। भाजपा सरकार द्वारा हिजाब से मुस्लिम महिलाओं को आजादी दिलाने के नाम पर यह प्रतिबन्ध लगाया गया था।
परन्तु इसका असली उद्देश्य सामाजिक धु्रवीकरण करना था। 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के वोट प्रतिशत तो ज्यादा थे लेकिन सीटें कांग्रेस के 80 के मुकाबले भाजपा को ज्यादा मिलीं- 103 येदियुरप्पा सीएम बने पर बहुमत साबित न कर पाने से 6 दिनों में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद कांग्रेस व जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई जिन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा था।
एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने परन्तु भाजपा ने कथित तौर पर ऑपरेशन लोटस के तहत 13 माह पुरानी सरकार गिरा दी। येदियुरप्पा फिर से सीएम बने लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे येदियुरप्पा को त्यागपत्र देना पड़ा और बसवराज बोम्मई जुलाई, 2021 में सीएम बने जिनके कार्यकाल में हिजाब पर बैन लगाया गया। जिन राज्यों में हिन्दुत्व की प्रयोगशालाएं सर्वाधिक सक्रिय रही हैं, उनमें कर्नाटक प्रमुख है। यहां 2019 के लोकसभा चुनाव में इसलिए भाजपा को अच्छी सफलता मिली थी।
28 में से 25 सीटें उसने जीती थीं। कर्नाटक को भाजपा पूरे दक्षिण भारत में अपनी विचारधारा के प्रसार के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण मानती है। इसलिये यहां हिंदुत्ववादी एजेंडे को जोर-शोर से लागू किया गया था। इस साल के मध्य में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। उस वक्त भी भाजपा कांग्रेस को अपने एजेंडे पर लाने की कोशिश करती रही परन्तु कांग्रेस ने वहां भ्रष्टाचार व विकास को मुद्दा बनाया और साम्प्रदायिक सद्भाव का आश्वासन दिया।
हालांकि वहां चुनावी घोषणापत्र में जब कांग्रेस ने सत्ता मिलने पर बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने का वादा किया तो इसे भुनाने की भरपूर कोशिश भाजपा ने की थी। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बजरंग दल की तुलना बजरंग बली से करते हुए लोगों को भरमाने का प्रयास किया था।
चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए उन्होंने सभा में जय बजरंगबली के नारे लगवाए थे और एक तरह से उनके नाम पर वोट मांगे थे। कांग्रेस को इसी मुद्दे पर घेरने के चक्कर में प्रदेश भर में जगह-जगह हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ किया गया था। भाजपा एवं हिंदूवादी संगठनों के ये सारे पैंतरे नाकाम रहे और कांग्रेस जबर्दस्त बहुमत से जीती थी। कांग्रेस ने तब भी वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वे हिजाब पर लगे प्रतिबंध को हटाएंगे।
कह सकते हैं कि इस घोषणा से कर्नाटक सरकार ने अपने बड़े वादे को पूरा किया है। इस ऐलान को केवल इस नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिये कि इससे एक वादा पूरा हुआ है। यह नागरिकों के जीवन शैली को चुनने की आजादी देना है। पुरानी सरकार ने इस पर कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में आकर प्रतिबंध लगाया था और उसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को हिजाब से कथित तौर पर आजादी दिलाना था परन्तु वह एक बहुसंख्यकवादी निर्णय था।
जिसे यह संदेश देने के लिये लादा गया था कि अल्पसंख्यकों को उसी तरह से रहना, खाना-पीना, ओढ़ना-बिछाना होगा जैसा कि बहुसंख्यक समुदाय तय करेगा। यह निर्णय लगभग वैसा ही था जैसा तीन तलाक को गैरकानूनी बनाना या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना। इसका लक्ष्य कोई सदाशयता या जनहित न होकर एक वर्ग विशेष को आहत, अपमानित कर धु्रवीकरण करना था।
कांग्रेस सरकार द्वारा ऐसा निर्णय लेने का अर्थ यह नहीं है कि तमाम हिंदूवादी संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी चुप रहने वाली है। निश्चित ही इसे अगले चुनावों का मुद्दा बनाया जायेगा। प्रतिबंध हटाने को लेकर अभी से इन संगठनों ने हाय-तौबा मचानी शुरू कर दी है। कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये यदि भाजपा इसे 2024 के लोकसभा चुनाव का एक मुद्दा बना लेती है।
अपने खिलाफ देश भर में बनते माहौल में भाजपा को उन्हीं मुद्दों की जरूरत है जिनके बल पर वह लोकसभा चुनाव जीत सके। ठोस मुद्दों पर तो भाजपा के पास कहने के लिये कुछ है नहीं और न ही बताने के लिये उसके पास कोई उपलब्धियां ही हैं। देखना होगा कि कर्नाटक सरकार के इस निर्णय की क्या प्रतिक्रिया होती है।