ये अंधेरी रात

ये तंहाई भरी अंधेरी 

गहरी काली रात 

हमे डराते हैं।।

ये उमड़े घुमड़ते बादल

देख हम अक्सर कितना

डर जाते हैं।। 

ये चॉंद भी अपनी 

चॉंदनी संग मिल

जैसे हमें चिढ़ाते हैं।।

कहते जैसे ये मिल

हम तो बहुत खुश

हवाओं संग इठलाते हैं।।

देख तेरी हालत पर 

हंसी आती हमको

कह मुझे ये रूलाते हैं।।

कहने को कोई नहीं

हम तंहाई में बस 

आंसूं ही बहाते हैं।।

क्या करें जब हार जाते खुद से

अंधेरी रात में तंहा लिख वेदना

दर्द कि चादर ओढ़ सो जाते हैं।।

ये तंहाई भरी अंधेरी 

गहरी काली रात 

हमें डराते हैं।।2।।


वीना आडवाणी तन्वी

नागपुर, महाराष्ट्र