मणिपुरः सुप्रीम कोर्ट ही दिलाएगा इंसाफ

तीन महीने से भी ज्यादा समय से मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। जले हुए घर, डरे हुए चेहरे और वीरान गांव, हर समुदाय में खौफ है। कुकी समुदाय को इस बात का डर है कि कहीं मैतेई समुदाय उन पर हमला न कर दे और मैतेई समुदाय को भी इसी तरह का खौफ है। राज्य के कई इलाके ऐसे हैं जहां स्थानीय लोगों से ज्यादा सुरक्षा बल नजर आते हैं और जगह-जगह लोग हथियार लिए अपने-अपने गांव की सुरक्षा करते नजर आ रहे हैं।

 राज्य में लगातार हो रही हिंसा इस बात की ओर इशारा कर रही है कि दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की खाई गहरी होती जा रही है। यह एक ऐसी खाई है जिसका खामियाजा मणिपुर के लोग हर दिन भुगत रहे हैं। प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि हमारे साथ खड़ा होने वाला कोई नहीं, हमारी सुनने वाला कोई नहीं। हम यही कर सकते हैं कि अपने भाई-बहनों का शोक मनाएं और इंसाफ की मांग करें। कुकी समुदाय अपने लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहा है। 

मणिपुर की महिलाओं को देश की सर्वोच्च अदालत से ही न्याय की उम्मीद है।  मणिपुर के संघर्ष का बड़ा निशाना लड़कियां और महिलाएं ही बनी हैं। महिलाओं से हुई बर्बरता का वीडियो वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने काफी सख्त रवैया अपनाया था और तीन महिला न्यायाधीशों (सेवानिवृत्त) की कमेटी गठित की थी। अब जस्टिस गीता मित्तल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। इस कमेटी में जस्टिस गीता मित्तल के अलावा सेवानिवृत्त जस्टिस शालिनी जोशी और जस्टिस आशा मेनन को भी शामिल किया गया है।

 मणिपुर में जातीय हिंसा से प्रभावित पीड़ितों के पुनर्वास की निगरानी के लिए गीता मित्तल कमेटी ने तीन महत्वपूर्ण रिपोर्टें प्रस्तुत कीं। यह व्यापक दस्तावेज महत्वपूर्ण पहचान दस्तावेजों के पुनः बनाने, मुआवजे को बढ़ाने और कमेटी की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए डोमेन विशेषज्ञों को सूचीबद्ध करने की जरूरत पर प्रकाश डाला। समिति में शामिल तीनों महिला न्यायाधीश काफी अनुभवी हैं और उन्हें महिलाओं की पीड़ा का अहसास है।  

सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी के गठन के समय कहा था कि मणिपुर में हमारी कोशिश है कि कानून के शासन में विश्वास की भावना बहाल करने के लिए जो कुछ भी हमारे अधिकार क्षेत्र में है उसका उपयोग किया जाए। इसके साथ ही उस सीमा तक विश्वास, आस्था और आत्मविश्वास की भावना लाए। कमेटी की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट 25 अगस्त को सुनवाई के बाद दिशा-निर्देश जारी करेगा। शीर्ष अदालत कमेटी के कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रक्रियागत / निर्देश भी जारी करेगा। 

मणिपुर की हिंसा में हजारों लगों को अपना घरबार छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी है। उनके घर जला दिए गए हैं या फिर तोड़ दिए गए हैं। उनके पास अपनी पहचान के दस्तावेज भी नहीं है, इसलिए उनके पहचान पत्रों और अन्य दस्तावेजों को फिर से बनाए जाने की जरूरत है। हिंसा पीड़ितों और घरबार छोड़कर शरणार्थी बने लोगों के पुनर्वास के लिए पर्याप्त मुआवजे की जरूरत है। अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि न्यायपालिका तो लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए सजग होकर काम कर रही है। 

लेकिन मणिपुर की सरकार क्या कर रही है। राज्य सरकार और वहां के जनप्रतिनिधियों को ऐसा वातावरण सृजन करना होगा जिससे दोनों समुदायों में अविश्वास की खाई पाटी जा सके और राज्य में अमन-चैन फिर से बहाल हो सके। कुकी, नगा और मैतेई शांति से रह रहे थे लेकिन अचानक ऐसा क्या हो गया कि वे अब एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। 

स्थिति के भयावह होने का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि राज्य में तनाव सुरक्षा बलों के बीच जमीनी स्तर पर हो रहे टकराव की खबरें अब खुलकर सामने आ चुकी हैं। मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स के सैनिकों के खिलाफ काम में बाधा डालने, चोट पहुंचाने की धमकी देने और गलत तरीके से रोकने की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है। जबकि सेना का कहना है कि जमीनी हालात की जटिल प्रकृति की वजह से विभिन्न सुरक्षा बलों के बीच सामरिक स्तर पर कभी-कभी मतभेद हो जाते हैं, जिनका निपटारा संयुक्त तंत्र द्वारा तुरन्त कर दिया जाता है। 

मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स के बीच तकरार कई बार पहले भी देखी जा चुकी है। जटिल वातावरण के बीच राज्य सरकार का यह दायित्व है कि वह पीड़ितों के जख्मों पर जितनी जल्दी हो सके मरहम लगाएं और उन्हें इस बात का भरोसा दिलाए कि वे सुरक्षित रहेंगे और सरकार उनके दुख में उनके साथ खड़ी है। समाज में दूरियां कम करने का काम जनप्रतिनिधि ही कर सकते हैं। मणिपुर में शिक्षकों, बुद्धिजीवियों और मीडिया कर्मियों को भी समाज में वैमनस्य को दूर करने के लिए अपनी बड़ी भूमिका निभानी होगी, क्योंकि मणिपुर के लोग चाहे वह किसी समुदाय से हों इस देश के सम्मानित नागरिक हैं। राज्य सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन ईमानदारी से करना होगा।