तब तुम लौट जाना वहीं..

जब भी 

तुम गांवों का जिकर करोगे

अपनी कविताओं में

शहरों की बेचैनियत के किस्से

खुद ब खुद लिखें जाएंगे,

ये बात अलग है कि सुकून कहीं भी नहीं !!

जब भी

तुम लिखना जो चाहोगे

वृक्षों की उदासियां ,

घोंसलों में पसरा सूनापन

तुम्हारे अंतस के भीतर शोर मचाएगा ,

ये बात अलग रही कि सुन सकोगे कितना !!

जब भी

तुम करना चाहोगे एक मुलाक़ात

बारिशों के पानी से ,

यकीनन तब तक

भूल चुके होंगे सभी रास्ते

नदियों तक जाने के ,

भटकते-उलझते फिरोगे

कंक्रीट के जंगलों में ,

ये बात अलग रही कि किसे पुकारोगे प्रार्थनाओं में !!

जब भी

तुम दिनभर व्यस्त रहोगे 

कम्प्यूटर इंटरनेट के कोडिंग मकड़जाल में,

याद रखना,,तब भी दूर कहीं

एक कविता

कर रही होगी प्रतीक्षा ,

तब तुम लौट जाना

हां लौट जाना,, सदैव के लिए वहीं 

इधर कभी न आने के लिए !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश