राजा का बज गया बैंड बाजा

राजा ने जनता से पूछा – आजकल हमारी नीतियों को लेकर आप लोगों की क्या राय है?

जनता में से एक ने उठकर कहा – यदि आप बुरा न मानें तो आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूँ। कहानी सुनते ही आपको सब कुछ समझ में आ जाएगा।

राजा ने हामी भरते हुए कहानी सुनाने की अनुमति दी। बहुत दिनों बाद जनता में से किसी को राजा के सामने बात करने का अवसर मिला था। वह कहाँ चुप बैठने वाला था। उसने कहानी शुरु की –

“एक राजा था। वह एक आँख से अंधा था। उसे इस बात का कोई दुख नहीं था। अपने तलुवाचाटु मंत्रियों पर उसे पूरा विश्वास था कि उनके रहते उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। दूसरी ओर उसके मंत्री बड़े होशियार थे इसलिए वे राजा की झूठी प्रशंसा कर अपना मतलब साधने की फिराक में रहते थे। एक दिन एक मंत्री ने राजा की एक आँख से अंधेपन की प्रशंसा कर अपनी लालच की झोली ढेर सारे उपहारों से भरने की योजना बनाई। मौका मिलते ही वह राजा के सामने हाजिर हुआ। उसने राजा से कहा – “राजन! आप जब अपनी पत्नी के साथ होते हैं तो आप और आपकी पत्नी की आँखें मिलकर त्रिनेत्र शिव के दर्शन करवाते हैं। वैसे आप अकेले होने पर शुक्राचार्य से प्रतीत होते हैं। आप अन्यथा न लें तो...

राजा मंत्री के मुख से अपना गुणगान सुनकर इतने भाव विभोर हो गए कि उसके बीच में रुक जाने पर विचलित हो उठे। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने मंत्री से मैं तुम्हारे मुखमंडल से प्रशंसा के शब्द सुनकर अत्यंत प्रसन्न हूँ। किंतु प्रशंसा को इस तरह से बीच में रोकना ठीक नहीं है। इसे पूरा करो। तुम मेरी इतनी प्रशंसा कर रहा हो। मैं अन्यथा क्यों लूँगा? उल्टे तुम्हें उपहार देने के लिए पागल हुआ जा रहा हूँ।

राजा से प्रोत्साहन पाकर मंत्री ने आगे कहा कि यदि आपकी बची खुची दूसरी आँख की रोशनी भी चली जाती तो आप कौरवपति धृतराष्ट्र से महान सम्राट बन जाते।

यह सुनकर राजा गद् गद् हो उठा। उसने मंत्री की झोली उपहारों से भर दी।”

राजा कहानी बड़े ध्यान से सुन रहा था। कहानी समाप्त होने से पहले ही जनता रक्तचूसक नीतियों का उपाय बताने वाले चमचे वहाँ से नौ दो ग्यारह हो चुके थे। राजा अपनी लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरते उन्हें आवाज़ देने लगा।    

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657