एक बार फिर

सुनों न..

आज बो ही देते हैं

अपनी कुछ "प्रेम कविताएं"

मिट्टी में ,

आज नहीं तो कल

अंकुरित हो ही जाएंगी !!

सुनों..

स्फुटण के बाद

रोप देना तुम उनको वहां

जहां आजकल होती है खेती

बंदूकों की !!

सुनों..

एक दिन सिखलाएंगें

नई भाषाएं

आत्मिक प्रेम की

आने वाली सभ्यताओं को ,

इन पौधों पर उगे हुए

ये "हमारे हस्ताक्षरित प्रेम-पत्र" !!

और सुनों..

जहां भी खिल उठेंगे

नए-नए फूल

टहनियों पर ,

वहीं पुनर्जन्म होगा हमारा

एक बार फिर !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश