मंजिल पा ही लूँगी

मंजिल तक का रास्ता बड़ा कठिन है

और रास्ते में मयखाने भी हैं

सभी ने कहा वो शाकी है

बहक जायेगा ही, बस

तमाशा देखते रहना है

हर एक शराफत भरी

निगाहें टिकी मुझ पर हैं

पर पाँव लड़खड़ा रहे मेरे हैं

दिल डबडबा गए मेरे हैं

न लड़खड़ाहट दिख रही है

न मेरी घबराहट दिख रही है

जो शराफत का चोला ओढे नज़रे हैं

उनकी टक-टकी लगी मेरे बहकने पे है

लड़खड़ाती डगमगाती बस कदमों में

और जान बाकी है

लोग देखते रहेंगे, और रह ही जाएंगे

मैं मंजिल पा लूँगी और उससे भी आगे

बस बढ़ती चली जाऊँगी।

-- लवली आनंद

मुजफ्फरपुर , बिहार