हर धागे में तुमको चुनती

काश! मैं पलों को बुनती,

हर धागे में तुमको चुनती।

प्रीत की सींक में रचकर,

तुमको ओढ़ती तुममें ढलती।


काश!मैं एक रंगरेज होती,

प्रेम के रंग में तुमको रंगती।

इंद्रधनुषी सपनों के चितेरा,

स्वर्ण रथ पर तुमको ले उड़ती।


काश! मैं एक पाजेब होती,

बना घुँघरू तुमको मढ़ती।

पग ध्वनि की सुरीली तान को,

संग तेरे प्रतिध्वनित करती।


काश! मैं एक कली होती,

पँखुड़ियों में तुम्हें कस लेती।

प्रिय मधुप तुम सिर्फ मेरे होते,

पर पुष्प पर न उड़ने देती।


काश!मैं एक किताब होती,

हर पन्ने पर तुमको लिखती।

निज प्रतिलिपि बनाकर तुमको,

प्रेम-ग्रंथ का इतिहास रचती।


काश!मैं इस काश से परे होती,

यादों में तेरी फिर यूँ न रोती।

सोच के सीमांत तक जो है मेरे,

उसके आलिंगन में प्रतिपल होती।


    डॉ. रीमा सिन्हा

    लखनऊ