उस स्त्री की मानसिक,
शारीरिक पीड़ा का,
अंदाजा लगाना भी मुश्किल है ।
जिसने रातभर सिर्फ दरवाजों के,
खुलने व बंद होने की आवाजे सुनी हो ।
जो छुप गई है,
किसी अँधेरे कोने में ,
दहशत से भरी ,
अपने साये से भी डर रही हो।
उस स्त्री की पीड़ा का, अंदाजा लगाना भी मुश्किल है ।
सूख चुके हैं,
जिसके आँसू,
जो छिल जाने तक रगड़ चुकी हो देह को ।
पर अंतर्मन को के दर्द को न धो पाई हो।
उस स्त्री की पीड़ा का अंदाजा भी लगाना मुश्किल है ।
जो सिहर जाती हैं,
मात्र पति के प्रेम स्पर्श से भी ।
तैर आती हो आँखों में ,
नादान बचपन की दर्दनाक तस्वीरें,
उस स्त्री के खौफ़ में भर कंपकपाने की,
पीड़ा का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है ।
गरिमा राकेश 'गर्विता'
कोटा,राजस्थान