क्या ये आहट है बुरे दिनों की..

(पवन सिंह)

मूर्खताओं का जब महिमा मंडल होने लगे, सचेतक जब दुश्मन लगने लगें और धर्म ध्वजा जब पूरी ताकत से लहराई जाने लगे तो यह बुरे दिनों की आहट होती है। सत्ताओं का यह पुराना शगल रहा है कि जब-जब वे विफलताओं के नवीन कीर्तिमानों के करीब होती हैं तो अपने ठीकरे फोड़ने के लिए किसी न किसी दूसरे का सिर इस्तेमाल करती हैं। एक न्यूज चैनल को दिए गये अपने एक साक्षात्कार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने "बड़ी बहादुरी" से पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर  रघुराम राजन पर जिस तरह से आरोप लगाये हैं, दरअसल ये बुरे दिनों की आहट है। सीतारमण को आगे करके पूरी सत्ता अपनी विफलताओं के लिए रघुराम राजन के सिर ठीकरा फोड़ने के लिए कालीन बिछा चुकी है। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि रघुराम राजन ने गवर्नर के रूप में अपने कर्तव्‍यों को पूरा नहीं किया। जिससे देश के बैंकिंग सिस्‍टम संकट में पड़ गया। बैंक परेशानी में थे और उस समय नियामक यानी RBI दूसरी तरफ देख रहा था। रघुराम राजन ने बैंकिंग सिस्‍टम की तरफ ध्‍यान नहीं दिया। 

बिजनेस टुडे के एग्‍जीक्‍यूटिव डायरेक्‍टर राहुल कंवल और मैनेजिंग एडिटर सिद्धार्थ जराबी के साथ बातचीत में वित्त मंत्री ने राजन पर बैंकिंग क्षेत्र की बजाय दूसरी तरफ देखने का आरोप लगाया। उन्‍होंने कहा कि बैंक बाहरी दबाव से निपटने का काम कर रहे थे। राजन को उन्‍हें बाहरी दबाव से बचाना चाहिए था और बैकों को नियमों के बारे में जानकारी देनी चहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। दरअसल, कुछ दिन पूर्व  रघुराम राजन ने कहा था कि देश को विकसित बनाने के लिए 9 से 10 फीसदी ग्रोथ का टारगेट  रखना चाहिए। राजन ने ऐसा कुछ भी ग़लत नहीं कहा लेकिन चोर की दाढ़ी तिनके से खुजलाने लगी क्योंकि देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था की हालत क्या है यह किसी से छिपी नहीं है। 

वह बात अलग है कि देश का मीडिया प्रिंटिंग मशीन और कैमरा चला-चला कर, धका धक पंचर हो चुके टायर में हवा झोंके हुए है। भारतीय मीडिया अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी भारतीय अर्थव्यवस्था से पीछे दिखा सकता है। अर्थव्यवस्था पर भारतीय मीडिया रोज आपको "झूठोमाइसिन" की टेबलेट खिलाता है। इस वक्त भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को चार ट्रिलियन डालर के पार और पांच ट्रिलियन डॉलर तक जल्द ही पहुंच जाने वाली अर्थव्यवस्था बताया जा रहा है। 

मीडिया बता रहा है, मल्लब सरकार बता रही हैं कि पहली बार भारत की इकोनॉमी 4 ट्रिलियन डॉलर के पार पहुंच चुकी है और इसके साथ ही यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था वाला देश बनने के बेहद करीब पहुंच चुका है। 

वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के दौरान भारत की जीडीपी (India GDP) में 7.8 फीसदी की ग्रोथ हुई थी।  हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर भरोसा जताते हुए 31 अक्‍टूबर, 2023  को अपने एक बयान में कहा था कि आर्थिक गतिविधियों को देखते हुए जो शुरुआती आंकड़ें सामने आए हैं,उससे उम्‍मीद है कि नंवबर, 2023 के अंत में दूसरी तिमाही के दौरान आने वाले GDP के आंकड़े चौंकाने वाले होंगे...यानी सब झकास और ढिंचैक-ढिंचैक दिखाई देगा। 

बकौल "टनाटन मीडिया" चौथी अर्थव्‍यवस्‍था वाला देश बनने के बेहद करीब हैं अपुन लोग। एक चैनल उवाचता है कि- "जीडीपी लाइव के आंकडे़ को देखें तो पता चलता है कि भारत ने 18 नवंबर की देर रात को ही यह मुकाम हासिल कर लिया था और पहली बार 4 ट्रिलियन के आंकड़े के पार निकल गया।" चैनल भाई बताते हैं कि चौथी अर्थव्‍यवस्‍था वाला देश जर्मनी है और भारत और इसके बीच का फासला बेहद कम हो चुका है...। 

फीलगुड करिए ...इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश लेकिन 80 करोड़ लोग पांच किलो अनाज ले रहे हैं..है न गजब की अर्थव्यवस्था..सवाल बनते हैं कि आखिर ये कौन सी ग्रोथ है जो एक उद्योगपति के चरणों में ही शरणागत हो जाती है लेकिन इसका लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है? केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों को ही देखें-देश में 40 लाख से अधिक स्वीकृत पद हैं, जिनमें 30 लाख से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं. इसमें भी 9.64 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। यह जानकारी 2023 के मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा और लोकसभा में सामने आई थी। 

सबसे ज्यादा पद भारतीय रेलवे में खाली पदों की एक बड़ी संख्या है, 1 जुलाई, 2023 तक 2.63 लाख से अधिक पद खाली थे।  इनमें से 53,178 ऑपरेशन सेफ्टी कैटेगरी में हैं। देश के सिविल सर्विस में भारतीय प्रशासनिक सेवा IAS में 1,365 और भारतीय पुलिस सेवा IPS में 703 पद खाली हैं। इसके अलावा केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारतीय वन सेवा IFS में 1,042 और भारतीय राजस्व सेवा IRS में 301 पद खाली हैं। 

सेंट्रल पुलिस में 1 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले पुलिस फोर्स में भी लाखों पद खाली हैं। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सीआरपीएफ, बीएसएफ और दिल्ली पुलिस समेत विभिन्न संगठनों में 1,14,245 पद खाली हैं। भाजपा शासित राज्यों के विभागों में तो और बुरी स्थिति है। उत्तर प्रदेश को ही लें तो राज्य के सारे विभागों में 30 से 40% तक संविदाकर्मी हैं। ये बेचारे 15-18 हजार के वेतन पर सालों से नौकरी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में प्लेसमेंट एजेंसियों के खेल गजब के हैं। 

सत्ता और प्रशासन के साथ प्लेसमेंट माफियाओं ने मिलकर शोषण का एक नया अध्याय ही लिख डाला है। इन बेचारे कर्मचारियों का न कोई दर्द सुनने वाला है न इनके पास अपना दर्द सुनाने का कोई प्लेटफार्म है। अगर अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर या उसके पार है तो कहां है इस अर्थ की रौनक? बाजारों से खरीददारों की भीड़ गायब है? नौकरियां गायब हैं? सरकार अगर कुछ हजार पदों पर भर्तियां कर भी रही है तो ढोल पीट कर नियुक्ति पत्र बांट रही है..कभी मोहल्ले का डाकिया चुपचाप अप्वाइंटमेंट लेटर डाल घरों में आता था। त्यौहारों में भी फीकापन आ चुका है... महंगाई चरम पर है और रूपया बांग्लादेश व अफगानिस्तान की करेंसी से टक्कर ले रहा है। 

मध्यम वर्ग गरीबी रेखा को छूने के करीब है हालांकि सरकार और उसका पेड फोंपू मीडिया बता रहा है कि चारों ओर पैसा है..जनता रोज अपनी जेब में 50 हजार की "गड्डी" डालकर अपनी "गड्डी" से निकलती है.. बागों में बहार आई हुई है....बकौल फोंपू मीडिया-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। 

नीति आयोग की   की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2013-14 से 2022-23 तक कुल 9 वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं... लेकिन ये खुशहाल लोग आखिर गये कहां? माननीया सीतारमण जी क्या यह बताना पसंद करेंगी कि देश के बैंकों का अरबों रूपिया लेकर 50 बड़े गुजराती उद्योगपति क्यों भागे और उन्हें कैसे भागने दिया गया? 

वित्त मंत्रालय  की ओर से जो लिस्ट जारी की गई है उसमें टॉप-50 विलफुल डिफॉल्टर्स का डाटा पेश किया गया है, जिनपर तमाम बैंकों के 87,295 करोड़ रुपये बकाया हैं। क्या इन्हें रघुराम राजन ने भगाया है? सवाल यही है कि सीतारमण ने जिस तरह से ठीकरा रघुराम राजन पर फोड़ा है उसके निहितार्थ जो मैं समझ पा रहा हूं वह ये कि ...ये बुरे दिनों की आहट है...