अपने कर्मों के बंधन में फंसा मैं, जब कर रहा होता हूं रुदन,
प्यार से मेरे परमेश्वर तुम मुझे क्षमा कर, हर बार ले लेते हो अपनी शरण ।
अज्ञानी मैं अहंकार में, मचा रहा होता हूं बहुत शोर,
वासनाएं मेरी तकलीफ देकर, पूरा लगा रही होती है अपना जोर ।
कष्टकारी यह रिश्तों का चक्रव्यूह, जीवन में छाया है घनघोर,
समझ नहीं आ रहा मैं, जाऊं तो जाऊं किस ओर ।
सद्गुरु को भेज मेरे जीवन में, तुमने मेरा सही मार्गदर्शन करवाया,
इंद्रियों पर संयम रखना, सत्कर्म करके आगे बढ़ाना समझाया।
अपनी ज्योति के प्रकाश से तुम, निरंतर मुझे प्रकाशित करते हो,
मैं तुम्हें याद रखूं या नहीं तुम, मेरा सदैव "आनंद" से ध्यान रखते हो ।
- मोनिका डागा "आनंद" , चेन्नई, तमिलनाडु