हम आइडिया बेचते हैं

समाज की गति को सवा लाख वक्र मार्गों पर चलाते हुए, अपने फायदे वाले रास्ते से जाने वाली ही राजनैतिक पार्टियां हैं। ऐसे दिशा निर्देशकों कोई क्या मार्गदर्शन पर्यवेक्षक की आवश्यकता पड़ गई। जितना भी महान हो जीत के साथ खिलवाड़ करके उसका मूल्य चुकाने का माद्दा किसमें होता है? 

जीत की खुशी सामने वाले शिविर को न मिले, यही सभी का मुख्य उद्देश्य होता है। ऐसे ऊहापोह के हालातों में ही रणनीतिज्ञ  यानी आईडियेबाज प्रवेश करते हैं। गहरे  समुद्र के बीच एक तिनका भी  मिल जाए तो उससे मिलने वाला साहस और धैर्य अलग है। उसी धैर्य का मुखौटा ओढ़कर रणनीतिज्ञ बनकर आते हैं। 

पार्टी में जो बिखरा हुआ है इधर उधर और अस्त व्यस्त है, उसे जहां का तहां सजा देते हैं और नए तरीके से पेश करते हैं। शुद्धीकरण के नाम पर ऊपरी बनाव शृंगार करते हैं। लेकिन  उस तरह चूना लगा कर, रंग रोगन करने वाला काम ही है, तो उनको इतनी बड़ी राशि ईनाम में क्यों दी जाती है?

मतलब फलां वर्ग के हमारे वोटर हैं, उन्हें कांख में दबाकर रखना होगा। दूसरा विपक्ष के वोटरों का वर्ग..... उन्हें दौड़ा दौड़ा कर मारना होगा। ऐसी सलाह देते हैं। किस गांव में, किस गली में, किस मतदान केंद्र में, कितने वोट हैं यह सारी बातें, सारे आंकड़े कानों में फूंकते हैं ये रणनीतिज्ञ। 

किस गांव में, किस शहर में, कितने लोग किस पार्टी के हैं? किस जाति को वे वोट देंगे? यह सारा विज्ञान न जाने कब से राजनेताओं के दिलो दिमाग में बसा हुआ है और वह अपने आप  अद्यतन वही अपडेट होता रहता है। पर इसमें रणनीतिज्ञ जैसे बड़े बड़े नाम वाले नया क्या करते हैं?

राहत कोष से कुछ न कुछ देना, मुफ्त की चीजें दिखाकर उलझाना, योजनाओं की  लोरियां गाकर सुलाना ऐसे आकर्षक मंत्र इनके लिए तो बाएं हाथ के खेल हैं।  

यह भी तो कुछ नया नहीं है न! औरतों को साड़ियां, ब्लाउज पीसेज, बिंदी, कुमकुम रखने छोटी छोटी चांदी की डिबिया देना, मर्दों को शराब पिलाना, जाति समाजों को नज़राने, युवाओं को खेल सामग्री बांटना यह सब तो लंबे समय से बांटी जा रही मुफ्त योजनाएं हैं। इसमें नया क्या है? किन दो वर्गों और समुदायों के बीच आग लगाने पर किसका फायदा होगा? किसे दूर भगाने पर कौन पास आएगा? भावनाओं और उद्वेगों को चिंगारी दिखाना जैसे तकनीक सारा वे सिखाते हैं।

सच है! अभी जो रणनीतिज्ञ रणनीतियों को बता रहे हैं यह सारी चीजें हैं मतदान केंद्र स्तर के कार्यकर्ताओं को काफी पहले से ही पता है। ऐसा कहा जाता है जब तक बड़े न बताएं वह सिद्धांत नहीं होता। इसी तरह बताने वाले बताएं तब सड़ा सा संदेश भी काफी मूल्यवान बन जाता है। निचले स्तर के अति सामान्य कार्यकर्ता और बड़े शहरों में एसी रूम में आराम फरमाने वाले नेताओं के बीच के संबंध टूटने की वजह से ही निचले स्तर के गतिविधियों का और जनता क्या सोचती है इस बात का पता उपरी मंजिल के नेताओं को पता नहीं चल पा रहा है। 

परियोजनाओं में कमीशन, निर्माणों में शेयर पर अधिक ध्यान जाने की वजह से निचले स्तर पर जो जनता है उसके प्रति ध्यान जा ही नहीं रहा है। पार्टियों में सिद्धांतों और विचारों में बिना किसी संबंध के महज रोजगार और व्यापार के विशेषज्ञ रणनीतिज्ञ का वेश धारण करके एक्शन के नाम पर लोगों को शहरों में भेज कर उन्हीं विवरणों को नेता गणों के कानों में फूँक कर सैकड़ों करोड़ हासिल कर रहे हैं, अपना बैंक बैलेंस बढ़ा रहे हैं।                            योजनाएं लगाएं, कुछ मुख्य जातियों को ही टिकट दें जैसे अनेकानेक विश्लेषणों का मसाला जोड़ कर ऐसा बताते हैं कि आंख मूंदकर पूरी भक्ति श्रद्धा के साथ विश्वास करने के अलावा नेताओं के पास कोई और चारा नहीं रह जाता।

 दूर कहीं पहुंच से बाहर जो कार्य करता है उसके कंधे पर हाथ रख कर उसके सुख दुख का पता करें तो सारी बातें, सारी कमियां और खामियां बाहर आ जाएंगी और उन्हीं विवरणों को पार्टी पर विश्वास रखने वाले नेताओं के साथ बैठकर बांटकर रणनीति बनाएं तो उससे अधिक विश्लेषण और रणनीतियां अपने आप बाहर आएंगी। उसके लिए आपको किसी सलाहकार या कूटनीतिज्ञ या रणनीतिज्ञ की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

डॉ0 टी0 महादेव राव