नहीं है कब्जा करने से परहेज

कुछ भी हो हमारे नेतासुर, जमीनीचील, भू-बकासुर और कब्ज़ाई गिद्धों के लिए साष्टांग दंडवत प्रणाम भी कम है। उनके हाथ की सफाई, तेज दिमाग का अपना अलग ही अनोखा अंदाज है।

वही तो! इतना बड़े रूस को यूक्रेन को हथियाने गहरे पानी में डूबता देख कर मुझे लगता है कि पुतिन को हमारे नेताओं से सीखना चाहिए, इनकी कला चतुरता ऐसी कि कुछ भी कर जाएं। लाजवाब!

हमारे नेतागण, अधिकार प्राप्त गिद्ध भाई रात के बाद सुबह होने तक तालाब, नाले, गड्ढे, पार्क, जंगल, जमीन, सड़कें, पहाड़ियां, वन, बफर जोन, हरित पट्टी, खतरनाक सड़कें.... मतलब कुछ भी छोड़े बिना सब पर अपने कब्जे का असर चला कर हथिया लेते हैं आराम से। इसलिए कहता हूं, हमारे आक्रमणकारी कब्जाधारी नेता ही महान हैं इस मामले में। कब्जा करने के लिए असीमित चौर्य चातुर्य का होना आवश्यक है। परिस्थितियों का जायजा लेना होगा। समस्याओं की समाधि बनानी होगी।

 जगह-जगह जलते विवादों को और हवा देनी होगी। जिस तरह कुत्ते को मारने के पहले उसे पागल घोषित किया जाता है, ठीक उसी तरह जिस जगह को हथियाना है उसे बेकार अनुपयोगी जगह घोषित करना होगा। उस जगह को बेकार बताना होगा या अपराधियों, असामाजिक तत्वों के अड्डे का नाम देना होगा। इस तरह धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए उस जमीन पर कब्जा करना होगा। हमारे भाईगिरी वाले नेताओं के कब्जा करने का अद्भुत तरीका बेमिसाल है। तभी तो तभी तो इसमें सफलता का प्रतिशत बहुत अधिक है।

अगर इस तरह की तिकड़म न चले और परिस्थितियां अनुकूल न हो तब तुरंत प्लान बी तैयार। लोगों को उस जमीन पर ले जाएं और उनसे कहें अपने झोपड़े बना लें यहां। ऐसे कामों के लिए निर्धारित मजदूर वर्ग अलग होता है।

अगर यह तरकीब भी फेल हो गई तो भगवान है न? जिस जमीन पर कब्जा करना है वहां किसी भी धर्म का मंदिर, मस्जिद या गिरजा बना दो रातों-रात।  फिर इस धर्मनिरपेक्ष देश में किसकी हिम्मत है कि उस निर्माण को उखाड़ फेंके?

गंदे नाले पर घर बनाओगे तो निचले तालाब में गंदा पानी नहीं जाएगा। बरसात का पानी भी नाले में नहीं जाएगा। आवास, घर-बार भी नहीं डूबेंगे।  यह सब जनता के हित के लिए ही है न?

जिस तथाकथित तालाब में पानी का एक बूंद ही न हो, सूख गया हो, ऐसे स्थलों के आक्रमण को गलत कैसे और कौन कहेगा? इस जमीन पर सिर्फ मच्छर और गंदगी के अलावा क्या होगा उन्हें दूर करने के लिए ही तो यह भवन निर्माण है बंधु! यह जनकल्याण है समझते क्यों नहीं?

सरकार पर जनता की बहुत सारी अपेक्षाएं और आशाएं होती हैं। उन्हें पूरा करने के लिए ही नेता, मंत्री, सरकारी तंत्र, अधिकारी, कर्मचारी सदैव तत्पर रहते हैं। जनता को सुंदर, आनंदमय और सुखद परिसर देने के लिए ही तो यह सब किया जा रहा है। जनता हल्ला मचाती है कि तालाबों की गंदगी, मच्छर और दुर्गंध से छुटकारा दिलाया जाए। इसलिए सरकार उस तालाब के परिसर को साफ सुथरा रखने, उस पर से सड़कें, घर-बार, पार्क बनाते हैं।  जनता का अच्छा करो तब भी, न करो तब भी नेताओं को गालियां सुननी पड़ती हैं।

घरों के बीच रेत, सीमेंट, कंक्रीट से धूल उड़ रही है.... कहकर जनता जब शिकायत करती है तो उसे मिटाने के लिए छोटे-मोटे गड्ढों को और तालाबों को मिट्टी से पूर दिया जाता है। जनता जब जान जाएगी कि जो कुछ नेतागण कर रहे हैं, उनकी भलाई के लिए है। तब किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी।

कहीं कहीं हमने देखा कि जमीन कब्जे वाले मामलों मैं भगवान के नाम पर धंधा चलाने वाले कई हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में भगवान को ही उसमें लपेटा गया है। सरकारी जमीन हथियाने के जुर्म में साक्षात शिव शंकर भगवान के नाम पर नोटिस जारी किया गया। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के राजस्व अधिकारी नोटिस पाये लोगों के साथ साथ शिवलिंग को ही अदालत में पेश किया।सभी अगर भगवान के हाथों की कठपुतलियाँ हैं तो आज कब्जा भाइयों की कृपा से उनके हाथों की कटपुतली शंकर भोले बन गए। सामान्य जन  भगवान से प्रार्थना करते हैं कि समस्याओं से पार लगा दे। 

लेकिन अनैतिक कार्य करने वाले भगवान को ही अपना कवच बना लिए। यह तो कलयुग के अंत की निशानी है। भगवान को भी मिला लेने से पाप कम लगेगा, यह सोच कर उन्होंने ऐसा किया होगा। जिस तरह कब्जा की गई जमीन आपस में बाँट रहे हैं, उसी तरह इस पाप को भी सभी आपस में बांटते से दिख रहे हैं। अब यही कहा जा सकता है ... सबको सन्मति दे भगवान।

डॉ0 टी0 महादेव राव 

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) 

9394290204