आकाश में जो तारा चमचमा रहा था जो संयम परिग्रह त्याग की जड़ों को मजबूती से थमे हुआ था लाखों करोड़ों महावीर के अनुयायियों को धर्म की और ले जाने वाला सारथी देह त्यागी तपस्वी दिगम्बर की चर्या धारण कर जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के महाप्रयाण से जन जन की आंखें नम है। 21वीं सदी के महान साधक आज धरती से स्वर्ग के मोक्ष धामी पंथ की और शरीर को त्याग कर चले गए।
उन्होंने मृत्यु को महामहोत्सव के रुप में मनाया तभी तो त्रिकालदर्शी ने अपनी अंतरात्मा से जान लिया तभी तो अस्वस्थ होते हुए भी वह भक्तों को दर्शन देते रहे खुद खड़े होकर हाथों को उठा कर आशीर्वाद देते रहे । वहीं जैन समाज के तीर्थंकरों की परम्परा का निर्वहन करते हुए कठिन तपस्या से पंच महाव्रतो सत्य अहिंसा अपरिग्रह अचोर्य ब्रह्मचर्य की साधना में लीन सजगता के साथ तीन दिन उपवास करते हुए महामंत्र णमोकार का जाप करते हुए देह त्याग पुण्य है।
भारत भूमि का जो ऐसे महान साधक की कर्मभूमि रही। आचार्य श्री विद्यासागर जी जो दक्षिण के कर्नाटक राज्य के बेलगाम जिले के सदलगा गांव में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन जन्म लिया। विद्याधर से विधासागर की अध्यात्मिक यात्रा वर्धमान से वर्तमान की थी,आप के परिवार में जैनत्व दीक्षा पिता श्री मल्लाप्पा थे जो बाद में मुनि माल्लि सागर बने माता श्री मती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी वहीं आपकी तीन भाई और दो बहन भी ब्रह्मचर्य की साधना में है सिर्फ बड़े भाई ग्रहस्थ है बाकी पूरा परिवार संन्यास ले चुके हैं। महाकाव्य मूकमाटी के रचेता आचार्य भगवंत को 11 फरवरी 2024 को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया ।
इस मृत्यु महोत्सव यानि सल्लेखना की कड़ी परीक्षा देते हुए 77 वर्ष की आयु में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में स्थित डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी तीर्थ पर 18 फ़रवरी 2024 को देह त्याग कर चले गए। विश्व कल्याण के मूख्य विचारों से जीव जन्तु पशु पक्षियों के प्रति समर्पण भाव आचार्य श्री का हमेशा रहा, राष्ट्र की सोच में वह गरीबों के दुख दर्द के लिए भी चेतन मन से विचार करते थे तभी तो समाज के लोगों को वह निर्धन व्यक्ति की मदद करने का कहते थे।
जैल में बंद कैदियों के व्यक्तित्व में बदलाव आये नाकारात्मक सोच उनकी नहीं रहे उसके लिए उन्हें एक मौका देना चाहिए उन्हें जेल में रोजगार मेहनत करना चाहिए जिससे गलत विचार आये ही नहीं। वहीं देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी हो या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सभी से वहां कहते थे गोवंश का रक्षा करें भारत को भारत रहनें दें इंडिया मत कहें हिन्दी राष्ट्र व हिन्दी भाषा को आगे बढ़ने के लिए आगे आए।
इन सभी विषयों पर वह खुद भी प्रयासरत रहे हथकरघा उद्योग में में स्वलंबन बनने के लिए भी आगे रहे , गोशाला में गायों की देखभाल अच्छे से होये आज की पीढ़ी धर्म राष्ट्र व हिन्दी के करीब रहे तभी भारत विश्व गुरु बनेगा ऐसे विचारों के लेकर समाज की बुराईयों को दूर करने हेतु आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हमेशा ही जनमानस के लिए पुजनीय रहेंगे।
पूरे भारत में जहां जहां उनके चरण पड़े वहां स्थान तीर्थ बन गए , आप सभी को जानकर आश्चर्य होगा की भारत के दिगंबर जैन संतों के संघ का सबसे बड़ा संघ आचार्य विधासागर जी का है जिसमें अब तक 500 से ज्यादा मुनि आर्यिका ऐलक क्षुल्लक दीक्षा दी जा चुकी है ।
महान योगी साधक चिंतक विचारक लेखक आचार्य श्री विद्यासागर जी 8 भाषाओं ज्ञान था कन्नड भाषी होते हुए हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत,बांग्ला मराठी,अंग्रेजी आदि अन्य में आप को महारत हासिल थी पर आप हिन्दी के प्रति गौरवित रहे और बुंदेलखंड व मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में ज्यादा समय व्यतीत किया उन्हें गांव बहुत अच्छे लगते थे, शहरों की इस भागदौड़ भरे रास्तों से सुखी समृद्ध गांव जहां स्नेह प्रेम अपनापन मिलता है ।
वहीं उनको प्रिय रहा। उन्होंने हमेशा समाजिक राजनीतिक धार्मिक गतिविधियों में सकारात्मक बदलाव लाने हेतु प्रयास किए। ऐसे जनमानस के आराध्य भूमि के प्रति समर्पित संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के देवगामन पर हम उन्हें शत शत नमन करते हैं।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के संबंध मे दुर्लभ किन्तु सत्य जानकारी
आचार्य भगवान विधासागर जी महामुनि राज जी के पास आज भी वही कमण्डल है
जो 47 वर्ष पूर्व उनके दीक्षा गुरु श्री ज्ञान सागर जी महामुनि राज ने दीक्षा देते समय प्रदान किया था
आचार्य श्री विद्या सागर जी महामुनिराज और उनका त्याग
1. 30 सालो से नमक का त्याग।
2. 30 साल से मीठे का त्याग।
3. सभी हरे फलो का त्याग।
4. सभी सूखे मेवे का त्याग।
5. भौतिक साधन जैसे A/C कूलर पंखा हीटर बिजली मोबाइल आदि का त्याग।
6. उम्र भर थूकने का त्याग।
7. जीवनभर चटाई का त्याग।
8. बिना बताये विहार करना।
9. बिना किसी घोषणा के दीक्षा देना।
10. आचार्य श्री की पिच्छी की कभी भी बोली नही लगती बल्कि जो संयम को लेता है उसे मिलती है।
11. आपका पूरा परिवार ही संयम पथ पर चलकर मोक्ष मार्ग पर लगा है ये तो सिर्फ पता हैं और न जाने क्या क्या गुरुदेव ने त्याग कर रखा हैं वो तो भगवन ही जाने ।
प्रेषक लेखक - हरिहर सिंह चौहान
जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश
452001
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