कविता,तुम बिल्कुल मेरी माँ के जैसी हो,
मेरे भावों को समझती आसमां के जैसी हो।
जिस तरह माँ मुझे समझाती थी,
ठीक वैसे ही तुम समझाती हो।
जिस तरह माँ मुझे सहलाती थी,
तुम मखमली शब्दों से सहलाती हो।
माँ जानती थी मैं उस बिन न रह पाऊँगी,
तभी उसने,तुम्हें मेरी ज़िंदगी में जगह दी।
आज मेरी माँ इस दुनियां से दूर चली गयी,
पर तुम्हारा हाथ पकड़ाकर मुझे जीने की वजह दी।
माँ के जाने के बाद भी मेरी रचना में वह ज़िंदा है,
कविता, तुमने मुझे मेरी जन्नत, मेरी दुनियां दी।
डॉ. रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश