कला निपुणता रक्षकों की

पुलिस कौन है?

तुमने जानबूझकर पूछा है या जानने के लिए पूछा है? पुलिस या पुलिस का क्रोध न जानने वाला कोई बचा है? बच्चे से भी पूछोगे तो वह बता देगा।

क्या बता देगा

यही कि कुछ पुलिस वाले बहुत मारते हैं।

क्या सभी को मारते हैं?

बचपन में जब खाना नहीं खाते थे मां डराती थी कि पुलिस को बुलाऊंगी और शरारत करने पर पुलिस उठाकर ले जाती है, पुलिस भूत आएगा इस तरह। 

ये सारी बातें तो मां, नानी दादी की हैं। अब तो तुमने बहुत कुछ सीखा होगा, उसके बारे में बताओ।

अब उसके बारे में क्या बताना। कुछ पुलिस वालों को आगा पीछा देखे बिना हर एक को अबे कहकर बुलाने की विशेष भाषा अधिकार होता है। बिना कारण के थप्पड़ मारने का हाथ का अधिकार होता है। सामान्य जन को जूते की नीचे दबाने का पैर का अधिकार होता है। अपने ऊपर के अधिकारियों का अपने ऊपर के आला अफसरों को पवित्र रूप से पूछने का भक्ति भाव तत्व होता है। जब सब कुछ नहीं होता तो भागने का ज्ञान तत्व जीवन में ज्यादा ही होता है। इस तरह सारी कलाओं का समुचित निर्वाह करना ही खाकी कला की निपुणता है।

जैसा तुम कह रहे हो उस हिसाब से पुलिस का मतलब अपार ज्ञानी और महान शक्तिमान प्रतीत होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा क्यों हो गया, मेरी समझ में नहीं आ रहा है। 

आश्चर्य और सहानुभूति जैसी जो दुस्थिति है खास है।असल में हुआ क्या था?

इसी बीच उत्तर प्रदेश में एक पुलिस उच्चाधिकारी जांच के लिए थाने गए। वहां के एसआई को बंदूक में गोलियां कैसे डाली जाती हैं पूछा। एसआई ने कहा कि सामने नली से अंदर डालते हैं। जब पूछा गया कि कैसे निकालते हैं गोली तो उसने कहा नली को जमीन की तरफ रख दें तो गोलियां अपने आप निकल आएंगी। आश्चर्य से मुंह बाए खड़े उच्च अधिकारी ने उस थाने के सभी लोगों को तुरंत प्रशिक्षण के लिए भेजने का आदेश लिए और इस घटना को मीडिया ने कई कई बार दिखाया।

जिन कामों की आदत नहीं होती है उनके बारे में पूछ कर अर्थहीन मानना यही है। जंग लगी बंदूकों की कार्यशैली पता न होने पर पुलिस को कुछ नहीं आया है या कुछ नहीं कर सकते हैं कहना, खुद के अज्ञान का प्रदर्शन है।

पुलिस को जब बंदूक कैसे काम करती है यही पता न हो तो और क्या कर सकते हैं वे?

कुछ पुलिस वालों के दराजों में  रुपयों की गड्डियां, जेब भर महंगे सेल फोन, हाथ भर अधिकार का अहंकार जब है तो उन्हें जंग लगी बंदूकों से क्या काम? फिर भी अब तो सारा कुछ स्मार्ट और फ्रेंडली पुलिसिंग ही तो है।

फ्रेंडली का मतलब पुराने दोस्तों की तरह गले मिलते हुए एक दूसरे के कंधे पर हाथ डाले आदर सत्कार करके भेजते हैं क्या?

और क्या? कुछ लोग हाथ आए हर एक व्यक्ति के बटुए से रुपए आपस में बांटने के बाद ही भेजते हैं। हमारे पुराने दोस्तों से हम इसी तरह का व्यवहार जो करते हैं। फ्रेंडली का मतलब वही है और हम किसी पर विश्वास करते हैं।

बहुत जरूरी काम पर जाते हुए लोगों को अचानक रोकना और उनकी गाड़ियों का कागज दस्तावेज मांगना भी स्मार्ट पुलिसिंग है?

सड़क पर कई लोग जा रहे हैं लेकिन कुछ एक लोगों को गाड़ियां रोकने का आदेश देकर तुरंत उनकी गाड़ी से चाबी खींच लेना, चोरों को भी मात देता काम है, कला है। इसे देखकर हमें कई चीजों को सीखना  होगा। इसका अर्थ यह है कि जीवन में हर एक चीज पर ध्यान दिए बिना, कुछ विशेष चीजों पर ध्यान दें। यही दर्शन यही वेदांत इस काम में निहित है। 

शराब खरीदने के लिए सड़क तक आती लोगों की लाइनें और सड़क पर गाड़ी खड़ी करके जनता को परेशान करते लोगों पर ध्यान दिए बिना गाड़ियों को एक लाइन से ड्रंक एंड ड्राइव जांच करना ही क्या पुलिस के कार्यकुशलता का प्रतीक है?

ढूंढोगे तो चोर और उग्रवादी कभी भी मिल सकते हैं। लेकिन शराबी जब शराब पीते हैं तभी मिलते हैं। इसका मतलब यह है कि समस्या हम तक आए, इससे पहले हम जागें और समस्या की जड़ों तक जाकर उसका निदान करें। यह संदेश इस कार्य में निहित है, हमें जानना चाहिए।

थानों में कंप्यूटर तो आ गए हैं लेकिन सड़क दुर्घटनाओं जमीन जायदाद के झगड़े, परिवार की समस्याओं में कुछ पुलिस वाले पंचायत करते हैं यह तो नहीं बदला?

इसमें भी कम खर्च में तुरंत न्याय का सूत्र काम करता है। इसे सारे विश्व को अपनाना चाहिए। शराबियों को कैसे पहचानें, गाड़ियां कैसे उठाकर ले जाएं,  फौजदारी मामलों में पंचायत करके किस तरह बटवारा करें,  गलती न करने वालों से कैसे गलती मनवाएं,  बिना कोई संबंध के प्रकरणों में घुसकर किस तरह पैसे बटोरें, न्याय मांगती अभागन स्त्रियों के पीछे पड़ कर कैसे उन्हें परेशान करें,  इन विषयों पर अगर परीक्षाएं ली जाएं तो कुछ पुलिस वाले मेरिट में पास होंगे और सौ में हज़र अंक प्राप्त करने में सक्षम होंगे।


डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)

9394290204