सोते हुए समाज के किसी एक को
जागना निहायत ही जरूरी है,
क्योंकि सोने वाले ज्यादा है
और जागते की मजबूरी है,
जागता हुआ समाज
कभी तकलीफ में नहीं आता,
वे जुट जाते हैं मुसीबत में
कोई गम या सितम नहीं सताता,
काश बाबा साहब के साथ
कुछ और लोग जागे होते,
न सहना पड़ता जुल्मों सितम
समाज न अभागे होते,
एक अकेला लड़ लड़कर
सम्मान अभिमान ले आया था,
देकर के सबको हक़ अधिकार
सिर उठा जीना सिखाया था,
पर कुछ लोगों की फितरत
कभी बदल नहीं सकता,
खुद की मेहनत के बिना
मुफ्त वाली खुशी जब मिल जाये
तो खुशी के आंसू तक निकल नहीं सकता,
अभावों से मिली प्रसन्नता
हर किसी से संभल नहीं सकता,
तब वे चले जाते हैं उन्हीं
चिर परिचित विरोधियों की गोद में,
भूल जाते हैं समाज को
खैराती आमोद व प्रमोद में,
पढ़ लिख कर क्यों आज
लोग नहीं जाग रहे हैं,
जिम्मेदारियों से अपनी
क्यों भाग रहे हैं,
पतन की जिंदगी बिताने से अच्छा
उत्कर्ष का एक पल है,
ठान लो लक्ष्य पाने को
क्योंकि समाज बिल्कुल नहीं निर्बल है।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग