पूस के जाड़--- दोहा छंद

जब ले आये जाड़ हा, आगी अँगरा भाय ।

कथरी कंबल ओढ़ना, घलो काम नइ आय ।।


लकड़ी छेना जोर लौ, लागत हावय जाड़ ।

आगे संगी पूस हा,  करलव बने जुगाड़ ।।


आये महिना पूस के, लटपट रात पहाय ।

ठुठरत हावय तन अबड़, ताते-तात सुहाय ।।


काँपत हावय हाथ जी, कुनकुन लागे घाम ।

होत बिहनिया रोज के, सेंकव बढ़िया चाम ।।


ठुनठुनात हे जाड़ मा, गोड़ हाथ अउ हाड़ ।

लेत रउँनिया ठाढ़ हन,  बूता जाये भाड़ ।।


जाड़ अबड़ बाढ़े हवय, पहिन बबा कनटोप ।

कथरी कंबल ओढ़ अउ, हाथ गोड़ ला तोप ।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

मो.नं- 8966095681