खेत, तालाब या बागान
मेरे नाम नहीं।
कहीं जंगल या रेगिस्तान
मेरे नाम नहीं।
वह जो भेजे तो निमंत्रण
मुझे कहाँ भेजे,
कोई मकान या दालान
मेरे नाम नहीं।
देश पर कर्ज में है मेरा
बराबर हिस्सा,
देश की मिल्कियत, सामान
मेरे नाम नहीं।
दर्ज कागज पे है बिहान
मेरे नाम मगर,
आम व्यवहार में बिहान
मेरे नाम नहीं।
वजीरे शहर पीटते हैं
ढिढोरा जिसका,
ज़नाब वह भी आयुष्मान
मेरे नाम नहीं।
गढ़ी है मैंने मंदिर की
मूर्तियां फिर भी,
चढ़ावा, दक्षिणा या दान
मेरे नाम नहीं।
वे मानते हैं कि यह देश बस
उन्हीं का है,
इसलिए यहाँ की मुस्कान
मेरे नाम नहीं।
तुम्हीं बताओ किसे देखकर
मैं सब्र करूँ,
किसी कथा का भी उनवान
मेरे नाम नहीं।
मैं रोज भूख का एक प्रश्न
उठा देता हूँ,
इसलिए सेठ का सम्मान
मेरे नाम नहीं।
-धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
लोकतन्त्र सेनानी, पत्रकार एवं कवि