सपनों का गांव

ढूंढें कहाँ उस रंग बिरंगे हरे भरे गांव को 

जो रोज़ सपनों में नज़र आता है

नींद में तो दिखता है वैसा ही चमकता सुंदर

आंख खुलते ही गायब हो जाता है


अकेला हो गया है बहुत दिन से

लगता है जैसे हर रोज़ है पुकारता

उदास सा रहता है अब किसी की याद में

आने की राह हो जैसे किसी की निहारता


कभी अट्टहास होता था जहां 

नौजवानों की जहां गुजरती थी टोलियां

कहने को गरीब थे यहां रहने वाले

प्यार से भरी रहती थी उनकी झोलियाँ


उम्मीद है उसको अभी भी कोई आएगा

उजड़े हुए इस चमन को फिर कोई सजायेगा

इसी उम्मीद में करता रहता है इतंज़ार

वही गीत आकर कोई फिर से गुनगुनायेगा


रिश्तों की क्यारी में उगते थे रंग विरंगे फूल

बच्चों नौजवानों के मुख से रिश्ते थे पुकारते

रिश्ते का नाम लेकर कोई तो बुलायेगा

इसी उम्मीद में एक दूसरे का मुंह हैं निहारते


सपनों को पूरा करने जो चले गए कहीं दूर

लौटेंगे एक दिन फिर होकर मजबूर

कुछ नहीं मिलेगा उन्हें मैं ही याद आऊंगा

करूंगा इंतज़ार मैं वो आएगा एक दिन ज़रूर


रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं

जिला बिलासपुर हि0 प्र0