शबरी रसोई

राम जी की अभी-अभी प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। चूँकि फोकस पूरा राम जी पर था सो लक्ष्मण और सीता साइड कर दिए गए थे। राम जी बड़े प्रसन्न थे कि जो बाबर पिछले पाँच सौ सालों से कब्जा जमाए बैठा था आज उसका बोरिया बिस्तरा गोल कर दिया गया।

 वह भूल गया था कि उसने जिस जमाने में रामलला की जमीन हथियाई थी उस समय शरीफ लोगों का वास था। अब तो लोग ऐसे हैं जो बस की सीट से लेकर ताजमहल तक पर रुमाल डालकर उसे अपना बताने लगते हैं। फिर बाबर किस खेत की मूली है। उसे तो हारना ही था। सो उसका पत्ता कटा और असली मालिक रामलला फिर लौट आए।

इस बार राम जी बड़े प्रसन्न थे। हो भी क्यों न, भक्तों की असंख्य भीड़, चुनाव से ठीक पहले उनका चयन, जहाँ देखो वहाँ उन्हीं का नारा गूँज रहा था। राम जी को लगा क्यों न प्रतिष्ठान से पहले आधुनिक अयोध्या का एक राउंड मार लें। सो निकल पड़े अयोध्या नगरी के गली कूचों में। देश भर में उनके नाम से असंख्या गाने जहाँ-तहाँ बज रहे थे।

 अचानक उनके कान एक गीत की ओर आकृष्ट हो गए। गीत था – राम आएंगे तो लूट मचाएंगे, 10 रु. की चाय 55 में पिलाएँगे। गरीबों को लूटकर, पूँजीपतियों को नहलाएँगे। राम आएंगे तो लूट मचाएंगे। राम जी का माथा ठनका। यह क्या भैया मेरे नाम पर ऐसी कैसी लूट हो रही है। चलूँ तो चलकर देखूँ आखिर यह ऐसी कैसी जगह है जहाँ इतनी महंगी चाय बेची जा रही है।

गीत की धुनों का पीछा करते हुए राम जी एक होटल के पास जाकर रुके। होटल का नाम था – शबरी रसोई। उन्हें लगा वाह! शबरी माता उनके पीछे-पीछे यहाँ तक भी आ गईं। चलो अच्छा है खाने को झूठे बेर तो मिलेंगे। उन्होंने आवाज लगाई – हे शबरी माता! कहाँ हो? देखो तुम्हारा बेटा आया है। 

अपने बेटे को कुछ खिलाओगी नहीं। इतने में बैरा आ पहुँचा। उसने असली राम को नकली समझकर होटल से बाहर खदेड़ने की कोशिश की। इस पर रामलला ने उसे डाँटते हुए कहा – “अरे मूर्ख! मैं अपनी माता शबरी से मिलने आया हूँ और तू है कि मुझे भगा रहा है। तुझमें भक्ति भावना नाम की चीज़ बची भी है कि नहीं?”

बैरे ने पलटकर जवाब दिया – “सुबह-सुबह मेरे दिमाग की दही मत कीजिए। यह आपकी माता शबरी की कुटिया नहीं है। यह शबरी रसोई है। यहाँ बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया है। यहाँ नाम में श्रद्धा और लोगों की जेबें निचोड़ी जाती हैं। रुपया पैसा लाए हैं तो बताइए मैं आपकी सेवा करता हूँ। वरना रास्ता नापिए।”

राम जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था – “अरे मूर्ख! तुझे शर्म नहीं आती भगवान से पैसा माँगते हुए। यह मेरी माता शबरी की कुटिया है। तुम ताम-झाम के नाम पर उनका नाम बदनाम कर रहे हो। मैं यह कतई नहीं होने दूँगा।”

बैरे ने चिढ़कर कहा – “एक बार कहने पर आपको समझ में नहीं आता क्या? आज के जमाने में फोकट तो दूर झूठन भी खाने को नहीं मिलता। जहाँ तक भगवान की बात है तो इस धरती पर भगवान को मंदिर में कब बैठना, कैसे बैठना है यह सब उनके बनाए नेतागण तय करते हैं। यहाँ भगवान से पैसे तो क्या उनके नाम पर वोट छीन लेते हैं। इसलिए मेरी बात मानिए। पैसा है तो भीतर आइए वरना अपना रास्ता नापिए।”

असली राम जी इतना सा मुँह लेकर नकली राम के वेश में आए असंख्य भीड़ के बीच कहीं खो गए। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657